श्री समर्थ रामदास | Shri Samarth Ramdas

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Shri Samarth Ramdas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इस प्रकार समाज का दहित करना ही सन्तो के जीवन का ध्येय हता दै} मदारा्टीय सन्तेनि अपरत्यक्षतया समस्त संखार का उपकार किया है, कारण उन्होंने श्रेष्ठ तच्वज्ञान का प्रतिपादन किया ] अखिल मानव जाति को शान्ति ओर सुख देनेबरर शैदिकः यमं का उक्ीयन्‌ दिया । समद्र, के; क्य के. स्वयं स्व. रामचन्द्र झुकजी लिखते हैः--' दक्षिणम रामदास स्वामीने इसी लोक- धर्माशरित भक्ति का सचार करके मद्दाराट्र बक्ति का अम्युदय क्या |” ( गो. वसीदाष-व्येकधर्म ? युप्रसिद प्रा. रा. द. रानडे अपनी अध्यात्ममरन्थमालाकी प्रत्ताबनामें मददारा्ट्रीय सन्तोंके कार्यका उल्लेख करते हुए; लिखते हैं-” शान भक्ति और कर्मका निवेणीसंगम अगर कही है तो हमारे महाराष्ट्र सादित्यमे * ही है । जञानिश्वर जैसे शानी, नामदेव और तुवाराम जैसे भक्त और रामदास जैसे कर्मयोगी दमारे मद्दाराट्र में ही पैदा हुए. .....जिस प्रवार बाइविलका अध्ययन सादित्यिक दृ्टिसि किया जाता है, उसी प्रकार हमारे इन मन्तो के ग्रन्थोका अध्ययन होना आवदयकं है । > आने चलकर इन कै चरिवकी ओर अपना दृष्टिकोण क्वि प्रसार दोना चाहिए. यह बतरत हुए आप लिसते हैं कि ‹ चमत्कारेकी इृष्टिं इन सन्तोके चरितकी ओर +ध्यान देने की अपेक्षा उनके ग्रन्थों की उक्तियों वी ओर अधिक ध्यान देना चाहिए और इस प्रकार देखने से उनके ग्रन्था मैं बुद्धिबाद के योग्य अनुभव हमें मिलेगा। * श्री समर्थ रामदास स्वामी के समगें समत्त भारतवर्ष की दशा दर्यनीय थी। इस दीन दीन स्थितिका अवलोकन करके उन्होंने स्वयं आत्मानुभवम लीन रहते हुए. भी स्वधमं की सस्थापना करनेका निश्चय किया ओर जनता मैं व्यक्तिगत ओर रष्टय गुणो संवर्धन क्या) सकडो वपो कौ पराधीनता, दैवस्य ओर उदासीनता नष्ट क्के लोगो को प्रयत्नवादका पाठ पदुारर उन्दंने जनता को सन्मार्गगामी ओर कर्तन्यदश्न बनाया । ऐसे तेजस्वी और योक सन्त क चरित को टम अब प्रस्तुत करेंगे |




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