मुण्डकोपनिषद | Mundkopnishad

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Mundkopnishad by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ युण्डकोषनिपद्‌ [ सुण्डक है = न्च [अ [1 गौरी गुप जीर मम सनक हं प सहशालोष्गितं विरिहपषलः [>3 न ए, + पपर । कद्िन्तु भण! चात म॒थेतिदं कितं भ्र्तति ॥ ३ ॥ दोनवनमक प्रपिद्र जकः टा-भतन्‌! किसके नान दिये अनेषूर लिया नाता है १ ! है ॥ सनकः शुनकथापतं महा यासे महषृहोऽ्गिलं भनिपिप्मवायै विधि ररथद्ाहमिेतत्‌ः उपसर्त पयतः सन्फाच्छ पृष्‌ । ्ौन््किसोः दप्यथद्वंग्‌ विधिरेष पूपनियम इति मम्यते । पदक्य पष्वदीपिदत्या- यथं प्रा गिदेपणम्‌; अषदा- दिपुपसदनम्िवत्‌। किमितयाह--कसिप् भगो [8 विहते ठु इति पि भगवो कमिन्‌ किस मरुते आन श पहामृह्ने अङ्गिक पप धिष्व र यह सर जनि महाशञाठ--महागृहस शौवक- जनके पुत्रे भद्ध हिय चर्व उङ्गिकरे पि विधिवत्‌ अर्थह्‌ शाखावुतार नाकर छा । शौनक थोः अद्विके सयते पत्‌ रिद्‌ विरोपण पिले यह नाना जाता हैं कि इनसे हर अचे [ युरुपसदनका ] कोर नियम नहीं प | अतः इसकी र्यदा निदि केके व्थिं अण्वा मथदीपिकान्यायके व्व यह दपण द्वि गणा हैः वयोकि यह उपसदनव्रिषि हमलोगेंगें भी माननीय है ! सौते क्या पूछा; सो व ते हैं--मगवः--हे गन ! कमित कित रके जान च्य हिः दहल दीपक रनेरे कत शरस भीतर दोनों ओर पढ़ता हती मध्यदीपिक्ा या! देदलीदीपन्याव कहते हैं | अतः यदि यह कयन हंस प्प न्यक ही और तेह रना चि मि गुरुपसदन निधि दे एवं मी थी हमहोगेकि दिये मी आकर है लैर वदि द कथन मदाः फलि हो वह्‌ समना नादि जि णपि दर प्तक




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