गृहभंग | Grihabhang

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Book Image : गृहभंग  - Grihabhang

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जि पक जानि वे सोग दूसरी गली में नहीं रडने। हो, मांसाहारियों के यीद ब्राह्मण, लिगायत, वेप्णव जैसे बहुत कम रहते हैं। पटेल शिवेगीढ़ बौर दिवंगत पटवारी रामण्याजी के परों के बीच दो गलियों व दूरी है । लगमग बोमेक घरों का अंतर है। शिवेगोड़ घर पर हो था । गंगम्सा मोषें अंदर बाकर बोली--''शिवेगौड़, जल्दी उठों और देयो ! हमारे चन्निग भौर अप्पर्णा छत वी यपरेसों को मूसनों से तोड़ रहे हैं ! यह देख, खपरेल सिर पर गिरने से सून निकल रहा है ! ““भापिर कयो? चटृताना जाने नित बहा था मैंने ! बस, इंकार हो नहीं सि, पपरन तोड़ने लगे ।” दिवदेगोड वी परनों सौरम्मा बपने पति में बोली, “वे विगढ़ गये हैं ! उन्हें यीचकर लाइपे ! ” दियेगौड़ का शरीर एक ठो भारी था भर ऊपर से तोंद निकली हुई थी ! चलता तो मदमस्त हाथी सा ! चप्पल पहन यह उस ओर घत पहा ! यहा देखा तो दोनों भाई फरार हो चुके थे ! रस बोस वहां मंदिर के महादेवग्या और दग पंद्रह अन्य व्यस्त जमा हो चुके थे ! रसोईपर के पिछवाड़े थी यपरेलें टूट चुकी थी ! गौड़ ने उनमें से दो-चार वो पकड़ लाने के सिए कहा । रसोईपर फी छत की हालत देखकर गगम्मा की यांयों में बांसू नक माये ! बोस उठी, ''शिवेगीड, उन रांड के बच्चों को धमीटकर सा । उन्हें उनके पैर तोइकर ही बिठाना चाहिए ! ” लषः नटी मिवे! रात होने तक भी उनका पठा नहीं थला ! इनके घर का नाग हों न जाने कहां भाग गये ? ”-- मगम्मा कोई दग दार चडयड़पी । वे घर में बहू भगेसो है। पिछवाड़े के घपरंल टूट चुके हैं, फिर भी अपेली रहने में उमि डर नहीं सगता । बह कहती है *'जटा मैं रह, वहां भूत भी नहीं पटपते । लेकिन ये हसमयोर न जाने कहा भाग गये ? उनके प्राण थी उसे निलमर भी चिता नहीं 1 बढ़ी छिने बैठे होगें ! रात में न जाने बया यायेंगे ! बाड़ी के नारियल चुराकर खाने होगे ! सेत की और गये होंगे तो गस्ने तोइकर खाते होंगे ! फिर भी कया धर सोटना नहीं चाहिए था ? बस सुवह रोटी के लिए आने दो, तब उन्हें बताऊंगी ! इस पर के ठीक सामने चोलेश्वर का मंदिर है। मंदिर का दर उसर की ओर है, और पर दा दर पूर्व को आर, अ्योतू सदिर दा यायां भाग उनके घर दे




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