अथर्ववेद भाष्यम षोडश काण्डम | Atharvaved Bhashyam Shodasham Kandam
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
50
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मू०४ [५५६] षोडशं कार्डम् ॥ ९६ ॥ ( ३,२५३ )
[+
सन्तस् ४ [ प्यायसृक्तम् ] ॥
१-४५ ॥ ध्मःट्मा देवता ॥ १, ३ सापृन्यदुष्टुप् ; २ प्राजापत्योप्णिकू ;
४ भा थङक्तिः; ५ श्रयुरो गायत्री ¦ ६ सन्नी त्रिष्टुप् ; ७ शुरिगा्यष्ठिक् ॥
झायुवूंदयथेमुपदेशः:--झायु की वृद्धि के लिये उपदेश ॥
नाभिरहं रयीणां नाभिः ससानानाँ भुयासस ॥ ९ ॥
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नाशि: । अहम । रयीराम् । नाभिः । समानानांप् ।
यासस् | ९॥।
भयुससू् । ९
भावार्थ--( दम् ) मैं ( रयीणाम् ) धनो की (नाभिः) नाभि [ मभ्य.
स्यान ] श्नोर ( समानानाम् ) समान [ तुल्यगुणी ] पुरुषों की ( नामिः ) नामि
( भूयासम् ) हो जाऊं ॥'
भावाय-जो मनुष्य विद्याधन पौर सुवणं झादि धन के साथ गुरी
मजुष्यों को प्राप्त होते हैं, चे'संसार में प्रतिष्ठा पाते हैं ॥ १॥
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स्वासदसि सूचा झसतो सत्य दवा ॥ २ ॥
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सु-श्यप्त् ¦ ससि । सु-डषाः । श्मुतः । सत्यषु। शा ॥२॥
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भाषाय-[दहेश्नात्मा!] त् (खासत्) सन्दर सत्ता घान}, ( सुषा: )
छन्द्र भरभाता बाला [ प्रभात के प्रकाश के समान. बढ़ने वाल्ला | (श्चा)
( मयेषु ) मद्यो के भीतर (अर्धतः) रमर ( श्रलि ) है ॥ २॥
भावाथ--जो मनुष्य यह विचारते हैं गि यदह श्रात्मां जो घड़े पुरायों के
कारण इस मजुष्य शरीर में चतंमान है, चह प्रभात के प्रकाश के समान उन्नति.
१-( नाभिः ) मध्यस्थानम् ( श्रम् ) पुरपः ( स्यीशाम् ) विद्या्ुवर्णः
दिधनानाम् ( नाभिः) ( समानानाम् ) सू०३म०१। दस्यगुखवताम् ( भूया
सम् ) मवेयम् ॥ |
र-( स्वाखत् } छु + शास सतायाम्-शत् | शोभनस्तत्तावान् ( रसि )
| दे ्रात्मन् त्वं भवसि ( सूषाः ) उषः किच्च । ० ४ । २३४ | खु + उष दाहे-झसि।
` शोभना उषल्लो यस्य सः । ्भातवेलापकाश्ततुस्वग्रषथमानः ( अस्त ) अमरः
नित्यः पुरुषार्थौ ( मत्यंषु ) मजुष्येष्ु (झा ) समुश्चये ॥
शरोर
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