बुद्ध - वाणी | Buddha Vani
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ बुद्ध-वाणी
«. सम्यक् समाधि, कुशल धर्मों श्रर्थात् सन्मनोदृत्तियोंमें समाधान
रखना दही सम्यक् समाधि है ।
१०. इस सम्यक् समािकी प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रौर चतुर्थ ध्यान-
रूपी चार सीदियां हे ।
पहले ध्यानमं वितक्र, त्रिचार, प्रीति (प्रमोद) सुख श्रौर एकाग्रता
होते हैं ।
दूसरे ध्यानमें वितक श्रौर विचारका लोप हो जाता है; प्रीति, सुख
श्रौर एकाग्रता ये तीन मनेोद्ृत्तियां द्यी रहती है ।
तीसरे ध्यानम प्रीत्िका लय होजाता है; केवल सुख श्रौर एकोग्रता
ही रहती है ।
चौथे ध्यानमें सुख भी लुप्त दो जाता है; उपेक्ता श्रौर एकग्रता
दी रहती है ।
ग
११. श्रमृतकी श्रोर ले जानेवाले मार्गमे श्रष्टांगिक मागं परम
मंगलमय मागे दे ।
र
१२. दुःख श्रायंसत्य, दुःख-समुदय श्राय॑सत्य, दुःखनिरोध श्राय.
सत्य त्रौर दुःखनिरोषगामिमाग श्ायसत्य, इन चार श्रायसत्योंका- ज्ञान
न होनेसे युगानुयुगोंतक हम सब लोग संसतिके पाशमें बंघे पड़े थे । किंतु
अब इन श्रायसत्यंका बोध दोनेसे हमने दु:खकी जड़ खोद निकाली है,
श्र हमारा पुनजन्मसे छुटकारा हो गया है ।
१.--१०. दी. नि. (महासतिपटान सुत्त) ११. म. नि. (मागंदिय
सुत्तत) ११. दी. नि, (महपरिनिष्वाण सुत्त)
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