बुद्ध - वाणी | Buddha Vani

Buddha Vani  by वियोगी हरि - Viyogi Hari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ बुद्ध-वाणी «. सम्यक्‌ समाधि, कुशल धर्मों श्रर्थात्‌ सन्मनोदृत्तियोंमें समाधान रखना दही सम्यक्‌ समाधि है । १०. इस सम्यक्‌ समािकी प्रथम, द्वितीय, तृतीय श्रौर चतुर्थ ध्यान- रूपी चार सीदियां हे । पहले ध्यानमं वितक्र, त्रिचार, प्रीति (प्रमोद) सुख श्रौर एकाग्रता होते हैं । दूसरे ध्यानमें वितक श्रौर विचारका लोप हो जाता है; प्रीति, सुख श्रौर एकाग्रता ये तीन मनेोद्ृत्तियां द्यी रहती है । तीसरे ध्यानम प्रीत्िका लय होजाता है; केवल सुख श्रौर एकोग्रता ही रहती है । चौथे ध्यानमें सुख भी लुप्त दो जाता है; उपेक्ता श्रौर एकग्रता दी रहती है । ग ११. श्रमृतकी श्रोर ले जानेवाले मार्गमे श्रष्टांगिक मागं परम मंगलमय मागे दे । र १२. दुःख श्रायंसत्य, दुःख-समुदय श्राय॑सत्य, दुःखनिरोध श्राय. सत्य त्रौर दुःखनिरोषगामिमाग श्ायसत्य, इन चार श्रायसत्योंका- ज्ञान न होनेसे युगानुयुगोंतक हम सब लोग संसतिके पाशमें बंघे पड़े थे । किंतु अब इन श्रायसत्यंका बोध दोनेसे हमने दु:खकी जड़ खोद निकाली है, श्र हमारा पुनजन्मसे छुटकारा हो गया है । १.--१०. दी. नि. (महासतिपटान सुत्त) ११. म. नि. (मागंदिय सुत्तत) ११. दी. नि, (महपरिनिष्वाण सुत्त)




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