एक संतका अनुभव | Ek Santka Anubhav
श्रेणी : संस्मरण / Memoir
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
517 KB
कुल पष्ठ :
26
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५ )
प्ुढसी श्राह ररीयकी फमी न खाली जाय ।\
इसका साधन यह किया है कि गरीब ठोग जो मजदूरी
वगेरहका काम करते हैं, उनसे काम लिया जाय तो दो चार:
पेसे मजदूरीके ज़्यादा देना, जिससे उनका मन दुग्ख न पावे |
और गरीव लोर्गोको फमी न सताना ।
` यह साघन गदस्यीमें अच्छी तरद होता दै ।
(४) दान
९-दान करते समय योग्य या अयोग्य पुरुपफा खयाल
मनमें न लाकर गरदसका धमं समकर साघु प्रह्मग गरीय
अभ्यागत अनाथो देना । विद्यादानं सवपते चटा वतलया गया
है इसलिये चियालयोंमें सदायता करनी चाहिये ।
२-आत्ममाचसे मछलो, चींटी, कुत्ते, कोंवे, गो, बन्दर,
घरमें रहनेवाली चिड्याँ और दूसरे पक्षी या कयूतर घगैरदकों
अन्नदान अव्रेए्य करना चाहिये । इनको खिलानेसे बहुत पुण्य
होता है। इस तरदका गन्नदान करनेते इस दासकों बहुत लाम
मिला है । पूरा अनुभव क्रिया ह ।
नम्र दोके अन्नदानसे मगवान्ने खुश होकर श्स पापी
जीवको समदर्शीभाव का दान दिया है । वाह वाहं ! दयमल
प्रसु घन्य है आपकी लोलाकों और आपको !
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