एक संतका अनुभव | Ek Santka Anubhav

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Ek Santka Anubhav by हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

Read More About Hanuman Prasad Poddar

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( १५ ) प्ुढसी श्राह ररीयकी फमी न खाली जाय ।\ इसका साधन यह किया है कि गरीब ठोग जो मजदूरी वगेरहका काम करते हैं, उनसे काम लिया जाय तो दो चार: पेसे मजदूरीके ज़्यादा देना, जिससे उनका मन दुग्ख न पावे | और गरीव लोर्गोको फमी न सताना । ` यह साघन गदस्यीमें अच्छी तरद होता दै । (४) दान ९-दान करते समय योग्य या अयोग्य पुरुपफा खयाल मनमें न लाकर गरदसका धमं समकर साघु प्रह्मग गरीय अभ्यागत अनाथो देना । विद्यादानं सवपते चटा वतलया गया है इसलिये चियालयोंमें सदायता करनी चाहिये । २-आत्ममाचसे मछलो, चींटी, कुत्ते, कोंवे, गो, बन्दर, घरमें रहनेवाली चिड्याँ और दूसरे पक्षी या कयूतर घगैरदकों अन्नदान अव्रेए्य करना चाहिये । इनको खिलानेसे बहुत पुण्य होता है। इस तरदका गन्नदान करनेते इस दासकों बहुत लाम मिला है । पूरा अनुभव क्रिया ह । नम्र दोके अन्नदानसे मगवान्‌ने खुश होकर श्स पापी जीवको समदर्शीभाव का दान दिया है । वाह वाहं ! दयमल प्रसु घन्य है आपकी लोलाकों और आपको !




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now