एक संतका अनुभव | Ek Santka Anubhav

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Book Image : एक संतका अनुभव  - Ek Santka Anubhav

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He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५ ) प्ुढसी श्राह ररीयकी फमी न खाली जाय ।\ इसका साधन यह किया है कि गरीब ठोग जो मजदूरी वगेरहका काम करते हैं, उनसे काम लिया जाय तो दो चार: पेसे मजदूरीके ज़्यादा देना, जिससे उनका मन दुग्ख न पावे | और गरीव लोर्गोको फमी न सताना । ` यह साघन गदस्यीमें अच्छी तरद होता दै । (४) दान ९-दान करते समय योग्य या अयोग्य पुरुपफा खयाल मनमें न लाकर गरदसका धमं समकर साघु प्रह्मग गरीय अभ्यागत अनाथो देना । विद्यादानं सवपते चटा वतलया गया है इसलिये चियालयोंमें सदायता करनी चाहिये । २-आत्ममाचसे मछलो, चींटी, कुत्ते, कोंवे, गो, बन्दर, घरमें रहनेवाली चिड्याँ और दूसरे पक्षी या कयूतर घगैरदकों अन्नदान अव्रेए्य करना चाहिये । इनको खिलानेसे बहुत पुण्य होता है। इस तरदका गन्नदान करनेते इस दासकों बहुत लाम मिला है । पूरा अनुभव क्रिया ह । नम्र दोके अन्नदानसे मगवान्‌ने खुश होकर श्स पापी जीवको समदर्शीभाव का दान दिया है । वाह वाहं ! दयमल प्रसु घन्य है आपकी लोलाकों और आपको !




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