व्यक्तगणित भाग - 2 | Vyaktaganit Bhag - 2

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Vyaktaganit Bhag - 2 by बापू देव शास्त्री - Bapu Deva Sastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९८४ {भच सब्या का रूपभड । ---+---=- ----->--~------~- वः [काका पायेगा जीएएएयललएए पैक कल्कि नताननः मःय मं नन त अनार १३३ । स्थन भिन्न संब्या को उप क्र भित्र सख्याकावा भागा न्न्य का रूप देने का प्रकार । न जनक कक नए पका न पान कर ¢ ज --- ----~ --- ~----- ` --~ अंश में छेद का भाग देओ । जा शेष कक न रहे तः लब्धि श्र. ' मिन्र संख्या दागी ।' यहीं अभीष्ट रूप है । और जा फक शेष व्च. ला परं लब्धिं सा अभोष्ट भागानवन्ध का अभिन्न विभागदगा | और ला शपरे घड उस भागानञन्ध के भागजातिस्प विभाग का अंश | ह्ागा आर ज्ञा छंद है सा हि उस का छंद होगा । ं उद्रा०। ‰ परार र. दन स्थल भिन्न संख्यायं का मित्र संख्या का वा । भाएनुख्न्ध का रूप द्रा । ट (^ डे < न्यास।: € == १८.५६ = दष्ट श्रागचस्ण्या दं) यह भगानुबन्ध है । इम प्रकार को उपपक्ति । न सत्र कि उदिदष्ट शिच संख्या का ऋण भाव्य है श्ार कद भाज॑फ हे तत्र लब्धि | ! उस का य्ास्तव मान द्ागा । इस लिये लब्यि हनन के प्रकार की उपपत्ति भागदार ' से स्पष्ट है । (१प२१' वां प्रक्रम देखे । ¦ अभ्यास के जपे ओर उदाहरण । + ~ न रजत ~ कल न नायक 0 9 वाति को कि क आल हिला एक कक गए ण म म न जा म ज 0 कण | (५ §-४' य) दर्म, (३) «६ (४) ११= ८१! (५) प = 9 । (६) ईई = ° (१ (०) ८ = १३८ २ (६) $, (४८ (1 न १२८ । (९१) हद = १३। (१९) ८ = ९२ द । (१२) ( = ५५। (१४) द = षड (4९) 4 = र हे 0 सं (त (१६) 14 = २३। (२०) ३१० = २ तति (२१) ° = ६४६४९, (रर) चह = १८ । (च) 0० = २९६५१०१ (२४) ४ = ०5 ४, ~~ ~---~--*- ~ ~~ ~ -- - ~ ~~~ ~ ~ ,




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