शरत - पत्रावली | Sharat Ptrawali

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Sharat Ptrawali by महादेव साहा - Mahadev Saha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्ारत्‌-पत्ावरी ५ न जाये । वे मेरी चीर्जोको छृदयसे प्यार करते हैं । शायद इसीलिये उनकी इतनी सतर्कता है | एक वात बौर उपीन,. . ....' भारतवर्ष के लिए प्रमघ बार वार * चरित्रहीन * मोग रहा था । अन्तमें इस तरदसे जिद कर रददा है कि क्या कहूँ । वह मेरा बहुत दिनोंका पुराना दोस्त है । और दोस्त कदनेते जिस वातका वोध दोता है, वह सचमूच वदी है 1 उसने गर्यके साथ सवसे कदा है किमे “ चरित्रहीन * दूँगा ही और इसी आचारम च, . .आदिके चार पच उषन्यारसोको चमण्डमें आकर लटा चुका है । वही ” भारतवर्ष * का मुखिया है | अब द्विंजू वाबू आदि ( हरिदास, > „ शुरुदासके पुत्र ) ते उसे धर द्वाया है । इधर ' यमुना ° मँ भी विज्ञापन छपा है कि उछी पत्रिकामें * चरिहीन * चछ्पेग । समाजपति भी बरावर रजिस्दी- चिद्धर्यो लिख रै हैं। किघर क्या कहूँ, ङु भी समरे नदीं आ रहा है । भमी अभी प्रमथनाथ लम्बी रोने धोनेकी च्द्धी मिली । वह कता है करि यह उषे नहीं मिला तो वद्द मुँद दिखाने लायक नहीं रहेगा । यहाँ तक कि उसे पुराने इट मित्र क्लब वगैरह छोड़ना पढ़ेगा। क्या करें, जरा सोच कर जवाब देना । चुम्दारा जवाब चाहिये। क्ट्रॉकि एक मात्र दुम ही र्खे इसका इतिदास जानते हो । बहुत अच्छा नहीं हूँ। सात आठ दिनोंसे ज्वर भा रहा है । अगर जरुरी समझना तो खरेनको यष्ट पत्र दिखा देना । तुम आपसे जितना चादो लड़ी लेकिन में तुम लोगोंका किसी समय शिक्षक था, कमसे कम उम्रका सम्मान तो देना ही 1 ~ सेवक शरत्‌ ष अचल नि ( फणी बाबू, यह पत्र आप पढ़कर उपेनकों मेज दें 1) नें १४; पोजाउंग डाउन स्ट्रीट रंगून १०-५-१९१३ प्रिय उपेन्द्र, आज तुम्हारी भी चिट्ठी मिलो और प्रमथकी भी । ठुम मेरे यारेमें बिल्कुल स्वस्थ दो गये दो, इससे कितनी चृप्तिका अजभव कर रहा हू,




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