अनन्त की राह में | Anant Ki Rah Me
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
540
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कु अनन्त की राह में
ही
विश्व-विधाता ने इन पिण्डो को उसीके छिये सिरजा है और
यह भी कि विश्व-सृष्टि मे उसका दी सवो च स्थान है ।
इस सिध्या विश्वास के विरुद्ध अरिस्ताकंस नामक एक
गक विद्धान् ने, अगज से खगसग २२०० बष पहले अपनी
आवाज उठाई थी । श्रीस देश के समोस नामक एक नगर में
जन्म लेकर- वह बाद में अलेक्जान्ड्िया (सिश्र देश का एक
शहर ) जाकर वस गया था । वह एक शिक्षक था 1 वहीं रहकर
उसने एक पुस्तक लिखी और प्रकाशित की; जिसका नाम था
“सूयं ओर चन्द्रमा के आकार ओर उनकी दूरियाँ ।” आकाश
क पिण्डो के अपने निरीक्षणो ओर अध्ययनों का चविशुद्ध गणित
के आधार पर विवेचन करने वाखा वहं प्रथम ज्योतिर्विद् था)
अपने प्रयोगों और निरीक्षणों का चविशुद्ध तकं-सज्ञत उहापोह
कर वह इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारी प्रथ्वी की अपेक्षा सूयं
हजारों शुना बड़े आकार का दै । उसने तब यह् कहा किं यह
वात कितनी असंगत और अथंहीन है कि इतने विशाल आकार
का एक पिण्ड (सूय) अपने से हजारों शुना छोटे एक दूसरे पिण्ड
( पर्व ) को केन्द्र बनाकर उसके चारों ओर घूमे ! उसने अपने
अध्ययनं के दो परिणाम निकरे -(९) तारे ओर सूयैतो
अचर दः ओर प्रथ्वी सूये के चारों ओर घूमती दै ; (२) इन
अचल तारों के बृत्त इतने वडे दैः कि हमारी प्रथ्वी की अमण-
कक्षा उन तारो की उससे (एथ्वी से) दूरियो के साथ ठीक वही
अनुपात रखती दैजो उन तासो के वृत्तो के अपने-अपने केन्द्र-
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