अनन्त की राह में | Anant Ki Rah Me

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Anant Ki Rah Me by पूर्णानन्द मिश्र - Purnanand Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कु अनन्त की राह में ही विश्व-विधाता ने इन पिण्डो को उसीके छिये सिरजा है और यह भी कि विश्व-सृष्टि मे उसका दी सवो च स्थान है । इस सिध्या विश्वास के विरुद्ध अरिस्ताकंस नामक एक गक विद्धान्‌ ने, अगज से खगसग २२०० बष पहले अपनी आवाज उठाई थी । श्रीस देश के समोस नामक एक नगर में जन्म लेकर- वह बाद में अलेक्जान्ड्िया (सिश्र देश का एक शहर ) जाकर वस गया था । वह एक शिक्षक था 1 वहीं रहकर उसने एक पुस्तक लिखी और प्रकाशित की; जिसका नाम था “सूयं ओर चन्द्रमा के आकार ओर उनकी दूरियाँ ।” आकाश क पिण्डो के अपने निरीक्षणो ओर अध्ययनों का चविशुद्ध गणित के आधार पर विवेचन करने वाखा वहं प्रथम ज्योतिर्विद्‌ था) अपने प्रयोगों और निरीक्षणों का चविशुद्ध तकं-सज्ञत उहापोह कर वह इस नतीजे पर पहुँचा कि हमारी प्रथ्वी की अपेक्षा सूयं हजारों शुना बड़े आकार का दै । उसने तब यह्‌ कहा किं यह वात कितनी असंगत और अथंहीन है कि इतने विशाल आकार का एक पिण्ड (सूय) अपने से हजारों शुना छोटे एक दूसरे पिण्ड ( पर्व ) को केन्द्र बनाकर उसके चारों ओर घूमे ! उसने अपने अध्ययनं के दो परिणाम निकरे -(९) तारे ओर सूयैतो अचर दः ओर प्रथ्वी सूये के चारों ओर घूमती दै ; (२) इन अचल तारों के बृत्त इतने वडे दैः कि हमारी प्रथ्वी की अमण- कक्षा उन तारो की उससे (एथ्वी से) दूरियो के साथ ठीक वही अनुपात रखती दैजो उन तासो के वृत्तो के अपने-अपने केन्द्र-




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