मुद्रा बैंकिंग विदेशी विनिमय तथा अन्तराष्ट्रीय व्यापार | Mudra Bainking Videshi Vinimay Tatha Antarashtriy Vyapar

Mudra Bainking Videshi Vinimay Tatha Antarashtriy Vyapar  by रतन लाल गोयल - Ratan Lal Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुद्रा का विकास { ५ पाम चह चस्तु फालतू हो जिसकी पहले को श्रावश्यवत्ताः है और जो उस वस्तु को लेगि के लिए तैयार हो जो पहले व्यक्ति के पाम फालतू है। यदि दोनों व्यक्तियों की आवद्यकताभ्रो मे इस प्रकार का दोहरा सयोग नही है तो वस्तु-विनिमम नहीं हो सकेगा । उदाहरणाथं यदि कोई विसान श्रषने गेहें दो बदल कर वपड़ा प्राप्त करना चाहता है तो उसे दूसरा ऐसा व्यक्ति मिलना चाहिए जो कपड़ा देकर गेहूं लेना चाहता हो । यदि उसे ऐसा व्यक्ति नहीं मिलता हैं और जो व्यक्ति उसे मिलता है वह कपड़ा तो देना चाहता है, किन्तु उसे गेहूँ की आवश्यकता नहीं है श्रौर वहू कपड़े के बदले लकड़ी के श्रौनार प्राप्त करना चाहता है । रधी स्ित्ति मे वरतु-विन्निमय तव तक नहीं हो सकेगा शव तक उन्हें कोई तीसरा व्यक्ति ऐसा न मिल जाये जो गेहें के बदले में जार देने को तैयार हो । श्नावद्यकताग्रो के दोहरे सयोग को प्राप्त करने मे लोगो को काफी असुरविधा होनी थी श्ौर कभी-कभी उसके झमाव के कारण वस्तु-विनिमय नहीं हो पाता था । जब तक विनिमय को जाने वाली वस्तुग्रो की संख्या कस थी आऔर विनिमय वा क्षेत्र सीमित था उस समय तक पारस्परिक ज्ञान के द्वारा भ्रावव्यकताशी मे दोहरे सयोग को स्थापित करना सम्भव था 1 प्रायिक विकास वे साथ मानव श्रावश्यकतामें बढ़ने लगी श्रौर विनिमय का क्षेत्र भी विस्तृत हो गया जिसके कारण श्रावश्यकताश्ों में दोहरे सयोग को स्थापित करना काफी कठिन होता गया । श्राज के विवसित समाज में तो विभिन्न व्यक्तियों की श्रावश्यकताश्रोमे दरस प्रकार के सयोग बः मिलना श्रसम्भव है । जाजें हाम ने इसी कठिनाई के सम्बन्ध में लिसा है-- वस्तु-विनिमय करने वाले व्यक्तियों की समस्त इच्छायो का. दस्तुभ्रो की श्री, गुण, मामा एवे मुल्य के सम्बन्ध में सयीग बैठना लगभग श्रसम्भव है, विशेषत्रया झाधुनिक अरयं- व्यवस्था में जहाँ एक ही दिन मे लाखों व्यक्ति लाखों प्रकार की वस्तुश्नो तथा सेवाग्ों का विनिमय करते हैं ।”* आवश्यकताधो के दोहरे सयोग की कठिनाई के कारण विनिमय के साध्यम की खोज श्रारम्भ हुई और मुद्रा के ग्राविप्कार के साथ वम्तु- विनिमय का स्थान मुद्रा-विनिमय ने ले लिया । (२) मुल्य के सवंमान्य साप का श्रमाव {वत्‌ जा (ापपरणण 4605६ गं $€) वस्तु-विनिमय की दूसरी कठिनाई मूल्य के माप के अभावके कार्‌ पदाः होती है । वस्तु-विनिमय प्रशाती मे कोई ऐसी वस्तु सही होती है जिसके द्वारा भरन्य वस्तुश्रौ तथा सेवाओं के मूल्य को झँका जा सके ! सुल्य का सर्वेमान्य माप न होने के कारण प्रत्पेक चस्तु का भूत्य प्रत्येक दूसरी वन्तु के साथ प्रत्यक्ष रूप से 2 भ्न 15 हा 16 [्तडडणोट #81 थी। फाड़ 0 27167108 1001*1त818 शछणात एछात्रलतेक ठेर 10 0६ ठ, पृयञााङ, वृपकाध्ा र बात पयोचट 0 रो? पनती ८ पाए (तडफ तटडपरते, र5फुट८काफि छा 2. फा0तेटश स्टर0पा४ 17 (ऋष) छा) 2 51016 उचए फाधा।0द६ की एटचइठणड घिवए टशटप्याइड प्राप1ठत5 ० ८०एाप्ाठते ८5 ६07 इटाएपए९६,”! नएश्घट्टर हैं. सघन ; एव एष्या ४ (ट्छ, ४.१.




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