उत्तरमण्डल की राजनीति दशा और दिशा | Uttaramandal Ki Rajaniti Dasa Aur Disha

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Book Image : उत्तरमण्डल की राजनीति दशा और दिशा  - Uttaramandal Ki Rajaniti Dasa Aur Disha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपने. साम्राज्यशाही मंसूबों की पूर्ति के लिये अंग्रेज शासक भी इसमे सहायक सिद्ध हुये। दलित जातियों. में अधिकारौ की उग्रचेतना का परिणाम पेरियार रामास्वामी नायकर के दक्षिणः भारत मे चलोये गये संघर्षो के रूप में सामने आया। कांग्रेस के भी उदारपंथी नेताओं ने दलित वर्गो के प्रति सहानुभूति का रुख अपनाने की वकालत की, जिससे कांग्रेस में गरम और नरम दलों के खेमे बन गये। सामाजिक मुद्दे पर विचार के लिए बनाये गये 1887 के सोशल कांफ्रेंस का पंडाल तिलक के नेतृत्व में गरमदलियों ने जला डाला। कालान्तर म बाबा साहब: डॉ भीमराव अम्बेडकर कौ समर्थ बौद्धिक नेतृत्व दलित जातियों को मिला, जिसके परिणाम स्वरूप सन 1932 के पूना पैक्ट के ने से. अछूत विधानमण्डलों मे अपनी अलग सीटें सुरक्षित कराने मं सफल रहे। उसी समय गैर-अछूत वंचित जातियों के लिए विशेष अवसर देने की भी सहमति बनी। लेकिन जल्दबाजी के कारण इसके कोई ' मानक नहीं बनाये जा सके॥1 स्वाधीनता के उपरान्त गैर-अछूत पिछड़ी जातियों के लिए बने काका कालेलकर आयोग की रिपोर्ट को खुद आयोग के अध्यक्ष के कवरिंग लेटर की वजह से कड़ादान के हवाले ध्न 1 मस्तराम कपूर - मंडल-रिपोर्ट : वर्णं व्यवस्था से समाजवादी व्यवस्था की ओर' मयूर विहार, नई दिल्ली, पृ 11-12 @) `




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