आजादी का अलख | Aajadi Ka Alakha

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Aajadi Ka Alakha by डॉ. मनोहर प्रभाकर - Dr. Manohar Prabhakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गया न. पर्चिगामत ली परम्परा न ख्ठियों कक जडता अर उनकी सचानात्कार ककया न्ञार पारणानत: परस्पर अर सढ़या का जड़ता चने उसके हल या उन द्यि लि नचिष्क्रियता >> कारण अतीत न विरासत लि तना को भी निष्क्रिय बना दिया । इसी के कारण अतीत की विरासत जे पर को लेकर चतंमान के यथाये को आात्मसात करत ट् युगाचुकुल अभिव्यक्ति के संसाथनों को तलाजने में असमये रहे । किस्तु इसके विपरीत वीसवीं सदी के पूर्वा्ध में राष्ट्रीय चेतना से सम्पृक्त जो काव्य-घारा प्रस्फुटित हुई, उसने कवियों की भ्रचुभूति एवं संवेदना के कारण ऐसी अभिव्यक्ति एवं शित्प को जन्म दया बस मास “ना अर प्रभावित 2 सनम र्ध ५ दया, जा जन-नावस का प्रभावत करत से सक्ष लि जे इन रचनाओं में जहां एक ओर देश-भक्ति एवं स्वाघीनता-प्राप्ति की के स्वर मुखरित हुए, तो दूसरी आर विभिन्न राजनीतिक आत्दोलनों श्रौर लोक-जागरण की प्रदत्तियों ने भी अभिव्यक्ति पायी । चेतना के विभिन्न स्तरों का सपर्णे करते हुए इन रचनात्रों में यांघीवादी जीवन-द्शन से प्रभावित विचारों को व्यस्त किया गया है, तो स्वाघीनता प्राप्ति के लिए शक्ति के प्रयोग का भी आद्वान किया गया है।! श्रागे चलकर रूस की क्रान्ति के वाद इन स्वनात्ं पर समाजवाद का प्रभाव भी देखा जा सकता है 12 राजस्थान में राजनीतिक चेतना और स्वाघीनता-संग्राम का स्वरूप भले ही ब्रिटिग शासित प्रदेशों से भिन्न रहा हो, किन्तु यहां के प्रबुद्ध साहित्यिकों, लेखकों घ्रौर कवियों के समूचे सृजन को श्रपनी स्थानीय विशिष्टताओ के साथ भारतीय राजनीतिक एवं सामाजिक परिवेश में ही देखा जाना चाहिए, क्योकि उनके इप्टि-कषेत्र में केवल राजस्थान ही नहीं; अपितु पुरे राष्ट्र की परिकल्पना थी । इस सन्दर्भ में सबसे पहले हम देशासुराग की उद्वोधक रचनाओं को लेते हैं। इस संबंध में बह दृप्टव्य है कि जव किसी भी देश में राप्ट्रीय चेतना का प्रादुर्भाव होता है; तो सबसे पहले उसकी अभिव्यक्ति देशानुराग के रूप में होती जव देश के निवासी झ्रपनी पुथक्‌ पहुंचान श्रौर विदेशी से भिन्न झपनी विशिष्ट सामाजिक, ऐदिहासिक एवं सांस्कृतिक परमस्परास्रों को उजागर करने के लिए होते हैं । उनका श्रपने भ्रत्तीत के प्रति मोह-भाव होता है श्ौर वे श्रपने पुरखों के पुण्यों और उनके महान्‌ कार्यो की कीत्ि-कथाओं का वखान करके श्रपनी वर्तेंमान दुर्दशा से उवरने को उत्कठित होते है ।* फक 2 || || 1... सुवेग, झ्ाघुनिक हिन्दी और उदूं काव्य की दिल्‍ली (1974) पृष्ठ 245 2. . चही पृष्ठ 246 3... गोचिन्द प्रसाद शर्मा, नेशनलिज्म इन इन्डो-एंग्लीकन फिपशन, पृ ८-2 | 1




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