भारतीय संस्कृति के मौलिक तत्व | Bharatiya Sanskriti Ke Maulik Tattva

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ भारतीय सस्कृति के मौलिक तत्व तही रही । ससार क॑ विद्वानू जानते है कि सहला वर्ष पूर्व क जिस युग में विश्व के अन्य देशों से विद्यमान मानव अननवस्व जंसी जीवन की दैनिक मौर भौतिक मावश्यकताओ की पूर्ति के लिए र चेष्ट 4, उसी समय भारत के ऋषि भौर मुनि लाग इसकी पूर्ति से निश्चिन्त और इनसे बहुत ,ऊपर उठकर इस ला के परे जो रहस्यमयी विविधा है उस₹ रहस्योदुधाटन मे व्यस्त थे । दार्शनिक चिन्तन का जौ सूत्रपातत ऋम्बेदकात मे हमा या, उसका ही चरम विकास भार तीय दशन के रूप में हुआ, जौ आज भी विश्व मे भारत की मानमर्यादा की पताका को ऊँचा करता है, ओर दाशनिक्ता भारतीय सस्कृति का एक मुख्य अग बन चुकी है । “भारत क प्रत्यक व्यक्ति दाशनिक है ।” यह षारणा सवथा निमूल नहीं । सच तो यह हूं कि भारतीय सस्कृति मे आदि काल से ही व्यक्त की भपेक्षा अव्यक्त और स्थूल वी अपका सुक्ष्म को अधिक महत्व दिया जाता रहा है । स्थूल की अपका सुकषम को भाधिक महत्व देने की प्रवृत्ति न जहाँ दार्शनि- कता का विकास किया, वही दूसरी आर भौतिक की अपक्षा पारभीतिव को श्रेय मानने की प्रवृत्ति ने भारतीय आचार शास्त्र तथा नीति शास्त्र को प्रभा० बित किया । भारतीय सस्कृति में नतिक्ता भर सदाचार का जो स्वोपरि स्यान है, बहू अन्य सभी सरन्टूतियों की तुलना म श्रप्ठ घापित हन का कारण है। नैतिकता का अपना मूह्य है, इससे ता कोई अर्वीकृति नहीं ही रखेगा मोर नंतिबता के जिन मानदप्डो वा निर्धारण और पालन भारपीम सस्कृति से किया गया है, वे ससार के सभी मनीपियों की विचार-क्सौटी पर खरे उत- रते है । यह भी विदेशी प्रभाव है, जो भाज भारत मे भर्नेतिषता की दृद्धि देखन मे भा रही है; ओर यही पर भारतीय सस्कृति के ्रमचद्ध, नियमित तथा सतक अध्ययन की मावश्यकता स्पष्ट है । भारतीय सस्कूति के व विशिष्ट तत्व जिनक कारण विपरीत वातावरण में इसकी रक्षा हुई य हूँ: +बात्मसपम, चारित्रिकदूढ़ता, धार्मिक निष्ठा, मनोबस को उच्चता, सपरया को शक्ति, ठग शो किमा, बोदिकरू केण!




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