पंजाब - केशरी | Punjab Kesari

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Punjab Kesari by रामलाल वर्म्मा - Ram Lal Varmma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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¢ = ससद लूटनेसे होता था । वीरता प्रत्येक सरदार्का आवश्यक गुण था। जो मनुष्य “अमरसिंह मजीदिया की नाई क्षमे तीर पार कर खकता-था.या जो मनुष्य श्दरीसिंह नलुवा”कीक्षनाई' तलवारके एकी वारसे सिंदका -शिरःच्छेदन कर सकता था,. वहीं मनुष्य सरदार माना जाता था और उसकी ख्याति सुन कर दूर-दूरके वीर उसके झण्डेंके नीचे चले आरहे थे । धोरे- घीरे वीरता और विराद्रीके वड़प्पनके ध्यानसे सिक्खोंमें सर- दारीका पद नियुक्त दीने लगा ओर इसके उपरान्त राजा ओर सघ्राट्का पद्‌ भी निश्चित हुआ 4 सिक्ल्लोंकी प्रसिद्धि, उनके चाहुवलकी पराकाछासेद्दी नियत हुई और सच तो यद्द है, कि संसारकी सभी चलवती ज्ञातियाँ इसी प्रकार गीरवको प्राप्त हुआ करती हैं। भत्येक सिक्ल- सरदारकी यदह कामना रहती थी, कि वह अपने वर तथा वुद्धित्ते अपने अद्ुचर एकन्न करे । सरदार्येको इस बातका तनिक भो ध्यान न था, कि जो छोग उनकै शण्डेके नीचे भाकर एकन होति हैं, वे किस समाज या जातिके हैं ! हाँ, इतना अवश्य देख लिया जाता था, कि.वे सवारका काम कर .सकते और लड़ सकते हैं वा नददीं । इस मान्‌ परिवर्त्तनके समयमें - प्रत्येक -सिक्ख पूरा संचार था और भली -भाँति युद्ध कर सकता था । गाँव - प्रायः ऊंचे स्यलोपर बसते थे, जिसमें. मैदानसे आनेवाले -शश्ुओं- को भली भाँति :देख सकें । उनकी '-गजियां ऐसी. खद्टी णं.ददोती ` ~® “हरीसिंद नलुवा”की जीवनी हमारे यहाँ 1) 'आनेमें मिलती है ।




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