पतिव्रता गान्धारी | Pativrata Gandhari
श्रेणी : धार्मिक / Religious, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८ पतिद्रता गान्धारी |
बेटी ! इस घोर दुःख मे व्याकुल नं होना तुम खद दही
समभदार हा, तुम्हे हम क्या समभावं । जाग्र ! अपने पतियों
के साथ तुम ने-खटके जाओ ! तुम्हारा कल्याण हो |
विदुर की सलाह से महाराज युधिष्ठिर ने माता कुन्ती को
उनकी घर में छोड़ दिया श्रौर द्रौपदी को साथ लेकर भाइयों के
समेत वे वन को जाने लगे |
उन्हं इस तरह दीन-भाव से वन जाते हए देख कर दुःशा-
सन इदयादि ममे-भेदी वाक्य कहने लगे । दुःशासन ने ताने से
द्रौपदी से कद्दा:--
हे द्रौपदी ! तुमको तो इन्द्रप्रस्थ का नया महल बहुत प्यारा
है, वह तुम्हारे ही योग्य बना है । उसे छोड़ कर तुम कहाँ
जाओगी । हम में से तुम किसी को श्पना पति बना लो, जा
तुम्हें कभी जुए में भी न हारे ओर तुम्हारे साथ उसी महल
में रहे ।
बदले की आग बड़ी बुरी होती है । बदला लेने ही की
जलन से दुःशासन ने ये वाक्य कहे थे । द्रौपदी ने इन्द्रप्रत्थ में
राजसूय यज्ञ के श्रवसर पर कौरवों की जा हँसी की थी उसी
का यह बदला था |
पर भीमसेन को इन लोगों की इस प्रकार की बाते' बढ़ी
बुरे लगी । वे बड़ श्रभिमानी थे, उन्होने कहाः-- .
तुम लोगों की चातें का इस समय उत्तर देना वृधा है ।
तुम जा चाहो को । पर याद रक्खो कि वन से लौटने पर
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