बाईसवीं सदी | Baeesavi Sadi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
176
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वर्तमान जगत् १३
“जीवित ही नहीं, बल्कि आज उस विद्यालयके मुकाबलेमें संसारमें
शायद ही कोई दूसरा विद्यालय हो । दर्शन, ज्योतिष, भाषा-विश्ञान, इति-
हास और राजनीतिक लिए नालन्दा अद्वितीय है।””
मे जिस समय नालन्दा विद्यालयके उत्कर्षको सुन रहा था, मेरे आनन्दकी
सीमा न थी, हृदयमें आनन्दका सिन्धु तरगें मार रहा था। श्रोतागण भी
इस परिचयसे बहुत प्रभावित दीख पढे। सब-के-सब मेरी ओर एक ऐसी
दुष्टिसि देख रहे थे, जिसमें प्रेम और सम्मानका भाव था। अब मेरी ज्ञातव्य
बाते उन्हे मालूम ही हो चुकी थी । मेने उनकी बात जाननेके लिए अपनी
राम-कहानीका यो शीघू अन्त कर दिया--
“कोई तीस वर्ष तक बिद्यालयकी सेवा करनेके बाद मे उत्तराखंड
घूमने आया । उस गुफामें, जो यहाँसे १२-१३ कोसपर है, पहुँचकर मुझे
मुर्छा या नीद आ गई, और अब तक वही पत्ठा रहा । बस, यही मेरी संक्षिप्त
कथा है। अब आप लोग बतलाये, आपकी जन्मभूमि कौन-सी है, क्योकि
आपकी भाषा तो नेपाली नही मालूम होती 1”
“अब उस नेपाली भाषाको तो आप कही बोली जाती न पायेंगे।
हाँ, पुस्तकालयोमें उसकी पुस्तके अवश्य पाई जायेँंगी। अब सारे भारत-
ब्षेमें एक-ही भाषा बोली जाती है। हम सबका जन्म एक ही जगह
नहीं हुआ है। यद्यपि मेरे पिताका जन्म काठमांडोका था, लेकिन नालन्दा
विद्यालयमें शिक्षा समाप्त करनेपर उन्होने गया जिलेके दाक-प्रामको
अपना कार्य्य-क्षेत्र बनाया । मेरा जन्म वहीका है। अभी मेरे पिता जीवित
है और आाज-कल माताके साथ हजारीबागके वृद्ध-श्राममें रहते है। उनकी
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