बाईसवीं सदी | Baeesavi Sadi

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Baeesavi Sadi  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वर्तमान जगत्‌ १३ “जीवित ही नहीं, बल्कि आज उस विद्यालयके मुकाबलेमें संसारमें शायद ही कोई दूसरा विद्यालय हो । दर्शन, ज्योतिष, भाषा-विश्ञान, इति- हास और राजनीतिक लिए नालन्दा अद्वितीय है।”” मे जिस समय नालन्दा विद्यालयके उत्कर्षको सुन रहा था, मेरे आनन्दकी सीमा न थी, हृदयमें आनन्दका सिन्धु तरगें मार रहा था। श्रोतागण भी इस परिचयसे बहुत प्रभावित दीख पढे। सब-के-सब मेरी ओर एक ऐसी दुष्टिसि देख रहे थे, जिसमें प्रेम और सम्मानका भाव था। अब मेरी ज्ञातव्य बाते उन्हे मालूम ही हो चुकी थी । मेने उनकी बात जाननेके लिए अपनी राम-कहानीका यो शीघू अन्त कर दिया-- “कोई तीस वर्ष तक बिद्यालयकी सेवा करनेके बाद मे उत्तराखंड घूमने आया । उस गुफामें, जो यहाँसे १२-१३ कोसपर है, पहुँचकर मुझे मुर्छा या नीद आ गई, और अब तक वही पत्ठा रहा । बस, यही मेरी संक्षिप्त कथा है। अब आप लोग बतलाये, आपकी जन्मभूमि कौन-सी है, क्योकि आपकी भाषा तो नेपाली नही मालूम होती 1” “अब उस नेपाली भाषाको तो आप कही बोली जाती न पायेंगे। हाँ, पुस्तकालयोमें उसकी पुस्तके अवश्य पाई जायेँंगी। अब सारे भारत- ब्षेमें एक-ही भाषा बोली जाती है। हम सबका जन्म एक ही जगह नहीं हुआ है। यद्यपि मेरे पिताका जन्म काठमांडोका था, लेकिन नालन्दा विद्यालयमें शिक्षा समाप्त करनेपर उन्होने गया जिलेके दाक-प्रामको अपना कार्य्य-क्षेत्र बनाया । मेरा जन्म वहीका है। अभी मेरे पिता जीवित है और आाज-कल माताके साथ हजारीबागके वृद्ध-श्राममें रहते है। उनकी




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