समष्टिअर्थशास्त्र एक परिचय | Samashtiarthashastra Ek Parichay

Samashtiarthashastra Ek Parichay  by सी॰ सेल्वराज - C. Selvaraj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रथ परिवार के किसी वस्तु पर व्यय संबंधी निर्णय तक ही सीमित रह जाती है। दूसरे शब्दों में, व्यष्टिअर्थशास्त्र एक फर्म या एक परिवार द्वारा संसाधनों के आबंटन से जुड़ा होता है। व्यष्टि स्तर्‌ पर हम अनेक कारकों के स्तर को पूर्व निधारित मान कर अपना विचार क्रम प्रारंभ करते हैं। उनका स्तर हम स्थिर मानते हैं। किंतु समष्टिअर्थशास्त्र में वे सभी कारक भी ' चर' हो जाते है। उनके आकार एवं मूल्यमान का भी निर्धारण करना आवश्यक हो जाता है। इसके विपरीत अनेक व्यष्टिस्तरीय ' चर ' समष्टि स्तर पर 'स्थिर' मान लिए जाते है! आइए, उपर्युक्त दोनों ही कथनं के उदाहरण पर ध्यान दैः व्यष्टिस्तर पर अर्थव्यवस्था का समग्र उत्पादन स्थिर मानकर एक फर्म या एक परिवार के व्यवहार पर ध्यान दिया जाता है किंतु स्मष्टि ' स्तर पर हम उसी समग्र उत्पादन के स्तर को निर्धारित करने कौ समस्या पर विचार करते हैं - वहाँ ये स्थिर नहीं रह पाता। इसी प्रकार समष्टि अध्ययन मे समग्र उत्पादन के विभिन्‍न परिवारों या संसाधनों के बीच आवंटन को स्थिर माना जा सकता हे किंतु व्यष्टिअर्थशास्त्र में इस आबंटन का निर्धारण एक बहुत आवश्यक कार्य हो जाता है। अब गेहूँ उत्पादन के लिए किसान की ही बात लें। उसे गेहूँ के समग्र उत्पादन से कुछ लेना-देना नहीं होता। उसकी दृष्टि से तो उसके अपने खेत में हुआ उत्पादन ही सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रहता है। इसी प्रकार जब सरकार नई फ़सल आने पर गेहूँ को खरीदारी करना प्रारंम करती है तो उसकी दृष्टि बाज़ार ये आ रही समग्र आपूर्ति पर ही केंद्रित रहती है। कौन किसान कितना गेहूँ बाजार में ला रहा है, यह बात सरकार की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण नहीं होती! यही बातें एक औद्योगिक उत्पादक एवं विनिर्माण क्षेत्र के समग्र उत्पादन पर भी लागू हेती हें (हाँ एक अंतर अवश्य रहता है: सरकार विनिर्माण क्षेत्र के अतिरिक्त उत्पादन की सापान्यतः खरीदार कर भड़ार नहीं करती )। समष्टिअर्थशास््रः :. एक परिचय हमारे उपर्युवत विवरण से कदाचित्‌ एेसी धारणा लनने लगती है कि समष्टि ओर व्यष्टि अर्थशास्त्र दो पूर्णतः पृथक्कीकूृत विषय है, कितु व्यवहार मे सदैव ऐसा नहीं होता। आर्थिक विश्लेषण के ये दोनों स्तर परस्पर अंतर्निर्भर होते हैं। वास्तव में हम समूची अर्थव्यवस्था की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में आर्थिक इकाईयों के वैयक्तिक व्यवहार की व्याख्या करने का प्रयास करते हैं। हमारे उपर्युक्त कथन का अभिप्रायः होगा कि किसी इकाई द्वारा व्यष्टिस्तर पर लिए गए प्रत्येक निर्णय का कोई न कोई समष्टिस्तरीय सदर्भं या आयाम अवश्य होता है। परिवारों की उपभोग योजनाएं वैयक्तिक आय तथा वस्तुओं आदि पर लगने वाले करो से अप्रभावित नहीं रह पाती। इसी प्रकार व्यष्टिस्तरीय कारकों के समष्टिअर्थशास्त्रीय ' चरो पर बहुत गहन प्रभाव हो सकते हैं। उदाहरण के लिए समाज में समग्र बचतों और निवेश का निर्धारण मुख्यतः वैयक्तिक स्तर पर परिवारों द्वारा कौ गई बचतों ओर फमों द्वारा किए गए निवेश के योगफल से ही होता है। अतः व्यष्टि एवं समष्टिस्तरीय आर्थिक विश्लेषर्णो को पूर्णतः पृथक्कीकूत या स्वतंत्र मानना उचित नहीं होगा। वास्तव मै एकं विश्लेषण विधा उन आयामो पर ध्यान केंद्रित करती है जिन पर दूसरी में ध्यान नहीं दिया जाता। जहां व्यष्टिभर्थशास््र का सारा ध्यान कीमत प्रणाली और संसाधनों के आबंटन पर केंद्रित रहता हे वही समष्टिअर्थशास्त्र का चितन समग्र आय के स्तर के पिधरिण तथा अर्थव्यवस्था मे स्थावित्त पूर्ण संवृदुधि की समस्याओं पर केंद्रित रहता है। इस प्रकार अर्थशास्त्र की इन दो प्रमुख प्रशाखाओं के अंतर्सबंध स्पष्ट हो जाते हैं। अर्थशास्त्री किस प्रशाखा कौ प्राथमिकता देते है ओर किस पर कम ध्यानं देते हैः ग्रह तो इसी पर निर्भर करता है कि हमे उस समय विशेष मे समग्र का




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