जैन योग | Jain Yog Chatushtya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
316
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १५)
दता है उसा प्रबार याग टुखा वा विध्दस कर डालना = । याग मल्युकाभामगु
है । नर्वात् योगी कभो मरता नहीं । क्याकि याय आत्मा वा मात से यांजित करता
है। मुक्त हां जान पर आत्मा का सता के तिए जम मरण से छरकारा हो जाता है ।
थयागरुपी बवच से जब चित्त न्वा र्ता ह ता दाम के तीरण जलस्तर जा
तप को भी छिन्न मित्र कर डालत हैं. दुष्ठित हो जाते हैं-योगरुपी बदच से
टवराकर व शक्शुय तथा निप्प्रभाव हा जात हैं ।
यागसिद्ध महापुस्पा न कहा * कि यदार्विधि सुने हा--जात्मसात विय हुए
योग रूप दा असर सुनने वाल के पापा वा क्षय विध्वस कर डातत ^1
अशुद्ध-खारमिनित स्वेण अग्नि के यांग स-- आग मे गरठाने स जसे शुद्ध
हो जाता है. उसी प्रकार अविद्या--नतान द्वारा सलिन--दूपित था कजुपित आत्मा
यायर्पा अग्नि से पुद्ध हा जानी ह 11
भारदीय दशना म जन नशन तथा जनत्शून मे जनयाग मरा सयाधिय प्रिय
विपय है । जनयायक म्भ मे मैन उन सभी प्रयो का पारायणविया> जा भून
उपनघध हा सब । मँ ष्म सम्बध म आचाय हरिम म अ-यधिक प्रभावितह । उदान
जाभी लिखा है बह मौलिक टै गहन अध्ययन चिन्तन पर जाधत है ।
पिष्टं क्छ यपो समर मनम यट् भाव था कि आचाय हरिभट क इन चारों
याग प्रथा पर मैं बाय करू । हिने जगत् का अधुनातन शलौ म सुसम्पात्ति तथा
अूटित रूप मे य प्रथ प्राप्त नहीं हैं । अच्छा हा इस कमी की पति हो सर । दमक
निए सुझ उत्तम माग दशने तथा सयाजन चाहिए था । दिस सम यहे प्रस्ताव रषं
यह गूभ नहीं पड रहा था । क्याकि आज अध्यात्म तथा याग के नाम पर जा काय चले
रह हैं. वे ययाधमूलर बम तथा प्रशरित एव प्रचारमूलद नधिक हैं । उन तथाकथित
याग प्रबतका मो. आचायों बा अपना-अपना नाम चाटदिए विभति चाहिए प्रचार
चाहिए जा उनवं लिए प्रायंमिक है। खर जसी भी स्थिति है कौन बयां वर
१ योग कत्पतर धरप्ठां यागश्चितामणित पर
योग प्रधन धर्माणा योग मिद स्वयग्रह् ॥
तथा च जमवाजाण्निजरस)ऽपि जरा परा।
श्खाना रजयदमा य मूत्याम् स्युन्टाहूत ॥
गुष्ठोभवणि ताशष्णानि म-मयास्राणि सदया 1
योगवमावून चित्त त्ेपरििःवराप्यपि।1
जरयमप्यततु शूयमोण वधाने ^
मीत पाव्रनयायोच्चर्योगिनिदमहान्ममि ॥
मतिनस्य यथा हेस्नों बह्े शुद्धिनियायत'
योपासेचतसस्तरविया सलि पत्मन व ‹ योरि १६.४१
~
र डे ही
बम ही +
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