विद्यालय प्रशासन एवं संगठन | Vidhyalya Prashasan Evn Sanathan

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Vidhyalya Prashasan Evn Sanathan by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे विधासप प्रणान एवं मं किया जाता है क्योकि सोक्ठम्न मानद प्याय कै मनन्त भूम्प (19१211८ ५०7 को स्वीकार करता है । इस प्रवार इस सिद्धान्त के अनुसार धिक्षान्य्रधामत म॑ प्रः व्यक्ति का दायित्व एव अधिकार है । (५) इसका एक सिद्धान्त यह है कि अधीनस्प मधिकारियों के मा! अधिकारों की सुरक्षा फी जाप । (री) प्रभासन में न्याय, समानता, स्वतन्त्रता आदि सिद्धान्तों को स्थान मिस चादिये । (४) दिक्षा-प्रघामन के निरिचित मापदण्ड (512008105) एवं विधियाँ हो चाहिये । (४0) योग्य वा्येकर्ताओं का चुनाव होना चाहिये । (१10) कार्यकर्ताओी को अपने दाधित्वीं एवं अधिकारों का समुर्चित श होना चाहिए । जिससे वे अपने दायित्वो का उचित रूप से निर्वाह कर सकें । इस साथ ही उनको संगठन या सस्था के उद दर्यो का भानं होना चाहे । (१४) संगठनं या सस्या के सभी कार्यकर्ताओं के कार्यों एव रुचियों मे सामजः होना चाहिये जिससे सफलता को प्राप्त कियां जा सके 1 (क) सनी कार्यकर्ता में कार्यों का उचित विभाजन द्ोना चाहिए । (७0) प्रधासक को अपने दायित्वो को समझना चाहिये। इसके साय ही य स्वय को अपने साथियों का अधिनायक न साभकर नेता माने । यह स्वय को उन भाई समझे । वह अपने समूह को समान उद्द पयो की प्राप्ति के लिये सहयोग कै साः कार्ये करने के लिये प्रोत्माहन दे । थह योग्यता ही लोकंतन्त्र का सार दै । सदा प्रशासन की प्रक्रिया को लोकतस्त्रीय बनने के लिये इसी प्रकार के दृष्टिकोण हैं आवश्यकता है । भारत से इस दृष्टिकोण की परम आवश्यकता है । इसके अभाव ' हमारा नवजात लोकतन्त्र सफन नहीं हो सकता हैँ । (२८) चिक्षालय को 'लोकतस्त्र का पालना कहा जाता है।. थदि उसको स्वय को वास्तविक रूप में ऐसा सिद्ध करना है तो उपरोक्त सिंद्धान्तो के अनुसार शिक्षालय की आन्तरिक व्यवस्था को व्यवस्थित करना होगा । इसके साथ ही उसमें नेठा को स्देव सुझावों एव कटु आलोचनाओ को स्वीकार करने के लिये तत्पर होता देगा और उन आलोचनाओं पर विचार-विमर्श करके स्वय को तथा अपने शिक्षालम को श्रेष्ठ बताना पड़ेगा । शिक्षा अरशाप्तन के विषय में प्रचलित प्रवृत्तियाँ तप 2003 लाया अी0व तफ प्रचसित है--केन्डोकर्ण (८९४ {21123110} कौ प्रवृत्ति । भारत (1९००५ एशां 290० € शिक्षाशासन के विषय में दो पवृ्त ^ 0) दी प्रवृर्दि त्या विकेन्द्रोकरण (12८८601.




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