नरसिंहपुराण भाषा | Narsingh Puran Bhasha

Narsingh Puran Bhasha by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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- ` मरसिंहपुराण भांषा । ` 9 र. - कस्मात्‌ उनके शरीरसे तम उत्पन्नहुभा-१५ उसंतम्के पच नामेह तम सोह महामोह तामिंखरसन्धतभिख येप च ्रविधा की गंटिं ह बस उन्दी :त्रह्माजीसे सविया की उत्पत्ति 3६ इन्हीं अविद्यारूप पौँचों तमोंसे यह सुटि सवन्मोरंसे आ- च्छादित रहतीहैः सृष्टि 'जाननेवाज्ञे परिडितोनि इन्दीको मुख्य सृष्टि काहे 9७ जिससे कि दूसरीवार ध्यानेकरनेसे येप्रांच अं-. कारके अन्धकार उत्पन्नहुयेथे इसीसे इनको तिय्येक्सोतकह- ते है च इनते.जो सषि होती वह्‌-तिच्यंग्योनि कहाती है १८ चे सव पशुगण व कुमाग्गेगामीलोग इप्तीतिय्यैग्योनिमे है इस सृष्टिकोमी असाधकमान च्रारमुखंवाले ्रह्माजीने 9९ ऊष्वैखो- तनाम तीसरी सृष्टि बनाई उससे प्रतन्नहोकर उन्होंने अन्य सृष्टिके रचनेकी इच्छांकी २० इच्छाकरतेही उनकी :सृष्टिकी , बड़ी रडिहुई उसं सृषटिका अच्धौक्घोत नामह आ मनुष सव . भ्रकारके इसी 5 है ये सच सव कास्योकि साधक हैँ २१ , इनमे नवप्रकारहै व संब. मनुष्य तमोगुण ओर रजोगुए को घारणकरतेहें इसीसे ये कम्मेकरने भ दुःखी पातेरहतेह पर फिर २वैसेहीं क्म्मे कियाकरते हैं २२ है मुनिसत्तम यह बहुत : श्रकारकी सृष्टि ठुमसे हमनेकंद्वी पहिली तो महत्तत्वाद्िकोंकी सृष्टिहैःदसरी उनके गुणोकी २३.तीसरी उनके विकरोकी जो कि इंन्द्रियोकी सृष्टि कहातीहै्र तौथी स्थावरोंकी सृष्टिहै यह - . मुख्यसृशिकहातीदैगरप्वजो तिच्यैकूखोतकहा तीह वह तिय्ये- ग्योनि पंशुआओकी धिषटिदैःवद पा मृथिदद इसकेपीवे उर्व -सोतस्सृष्ठि.जो देव्ृष्टि कहातीहै यद -छठीहि २५ .इसकेपीडे - ` अव््ौक्लोतसुभनुष्योकी पिरदे यह साते माठर अनु - सृष्टिःजोः सालिकीमृष्टिःकहातीदेः २६ नवै दवसष्टिस नव॒. „. अकीरकीःसृिम पाच ति रकेत कहती दै जो महदरादिको के ` विकरोति होती वँ तीन. नो श्रहृतिसे उत्पन्हतीहै .




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