महाभारत भाषा | Mahabharat Bhasha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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| | 1 शान्तिष्पं मषाः का सचीपन् | ` १६ दः र सनस अध्याय १ ई छ (~ ९“ ३६ 1. १ दम्‌ ४३ { # ४५ । छ. + ९६ : ५० ॥ ता प ९ 1 ६ | हि विषं ` , पृष्ठ से | पृष्ठ तक शीष्मजी का युधिष्ठिर सेःशिष्य ओर गुरू का परस्पर में मीक्ष सम्बन्धी ,प्ररनोत्तर वणेन, , ˆ ~, ४०४ भीष्यजी का युधिष्ठिर से सतोरण व रजारुण व तमायुणं का प्रभावे चणैनः -.~ : (11 ४०४ भीष्मजी का युषष्ठिर सेः पृथक्‌ ‡ रजोगुण. तमोगुण सतोगुण |, ं का स्वभावगुण लक्षण वणंन करना, 1 ९०७ भीष्पजी का युधिष्ठिर सेः काम) क्रोधः. लोभ)ःमोह्‌ ` म, संयुक्त - मनुष्या कौ प्रकृति का वणेन ४०८ भीष्मजीका यषिष्टिर से विज्ञान शख़िररूपव मोक्ष का उपाय थ० 2११ भीष्मजी का युधिष्ठिर से ईश्वर ब्रह्मरूपमे भप्त होने की विधि व°; ४१३ युधिष्टिर का, मीष्पजी से दिराद्रूप को पूछना वे भीष्मजी का ४ विस्तारपूवेक वणेन करना, ` -.. ८. ४११ ५४. | भप्पजी का युधिष्ठिर से.जीव इश्वररूप. रादहेत का वभागः | ~ समेत वणेन.करना,- , ˆ - ° ` ४१८ युधिष्ठिरजीका भौष्मनी सेःराजा जनक्रके . माक्ष दानेका दासं |. पद्धना च भीष्पजी का पंचशिखन्‌म ऋषीश्वर का इतिहास र + विधिपएवेक कहकर समभराना; वणेन, ` न उ 2. | १ ४२० ४६ | मीष्मजीं का युधिष्ठिर से ` राजा जनक व, कपिलिदेवं -पुनिका, ४ - सम्बाद्‌ वणेन करना, „~“: ४२३ युधिष्ठिर का मीष्मजी से सुख दुःख होने का कारण क निभेय | ˆ . होने का यत्र पूछना च भीष्मजीका जनक व पंचशिख ऋषी- | . श्वर का सम्बाद्‌ कना. ˆ । ~ >| ०२४ | ४२४ यधिष्ठिरका भौष्मनीसे त्रतादिकोंका विधान, पृद्धना व ` भीष्मजी - का विधिवत वशेन.करना, २४ | ४२६ युपिष्ठिर का भीष्मजीसे शुभ अशुभ कमें के कत्ताओं को पूछना व भीष्पनीका इद्र मौर रदलादका' सम्बराद सुनाना, ' | ४२६ | यन्त युधिष्टिरका भीष्मजीसे निद्धनीराजाझँके दुःखका कारण पूछना व भीष्मजीका इसी दविपयमें 'राजाइन्द्र पर चंलिराजा का इतिहास वणान करना, ~~ |, | ४२६ भीष्मजीका राजा युधिष्ठिरस इन्द्र व वलिका युद्ध बणन करना ! व वलिके झंगसे लक्ष्मीका निकलना; के ४२६ | ८३९३ भर्‌ ५२ धद धथ बलि के अंग से निकली हुई लक्ष्मी को देखके राजा इन्द्रका| -- लक्ष्मी से पूछना व उसका उत्तर देना, ~ „+ | ४३३ ४३६ भीष्मजीकायुषिष्ठिरसे निरदैकारताके विषयम्‌ एर्दतिहाखकटना, | ४३९ ४१७ युधिष्ठिरका भीष्मनी से पूना कक वन्धुरो समेत राज्यक्‌ नष ोजानेषर कल्याण करनेवाला -क्या रै च उनका उत्तर देना, ¦ ४६७ ८८ युधिष्ठिरका यीष्यजी से चेश्वग्थेवान रोनेवाले ब न्ता को ।




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