सुशीला उपन्यास | Sushila Upanyas
श्रेणी : उपन्यास / Upnyas-Novel
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
318
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)तृतीय पवे। १३
मूपिह यह सब चरित्र देख सुनके नगरमें खोट आया । एक
सरायंकी कोठरीमें नाना विन्ताओंें रात पूरी की और सवेरे
प्रात:कालीन क्रियाओंसि निश्चिन्त होकर समर-पमाचार् पनेकी
इच्छासे नगरमें घूमने लगा ।
आन स्मेरे दी सुवणैपुरे महागनका आशान द्रवार मरा हुभ
है। संपूर्ण राज्यकमचारी यथास्थान बैंठे हुए है । परन्तु किसके मुंह
से एक शब्दं भी नहीं निकटता-ध्यानस्थ हि रहे है | इतनेमें एक
सॉडनीसवारने आकर इस शातिताकों भंग की, सब छोग उसकी
तरफ देखने लगे । उसने महारानको अद्वके साथ प्रणाम करके
एक ददी दी ओर वह एक ओर ना खड़ा हुआ । महारानने वह
चिट्ठी मंत्रीको देकर पढ़नेको कहा; मंत्री पढ़के सुनाने छगे । उसमें यह्
छिखा हुआ था,-
श्रीवातिरागाय नम
स्वति श्रीसुवर्णपुर शुभरुधाने विराजमान राजनीति-नैपुण्यादि विविधगुणसम्पन्न
राजेश्री विजयसिंहजी योग्य रामनगर नरेश नाहरा्िहका यथायोग्य वचना । अपरंच
आपको इस तिषयरमे अनेक वार शिखा गया कि आप अपनी कन्या मदनमालतीका
विवाह हमारे कुमार श्रतापसिंहके साथ कर देवें, परन्ठु आपने हमारे पत्रोंका कुछ
भी सत्कार नहीं किया । भाप विचारणील और दूरदर्शी हैं, चाहें ते अब भी
चेत सकते हैं । इसलिये एक वार पुन सूचना दी जाती है कि आप मदनमाउतीका
सम्बन्ध हमरे पुत्रके साथ केका शीघ्र ही प्रबन्ध करं । अन्यथा वराक्तारविः
वाह कराया जवेगा जौर तव आपको भ्ये उनित होना पडेगा । इत्यं विस्तरेण ।
ज्येष्ठ शुक्छा ६ रे भवदीय-हितैषी
गुरुवार | नाद्रासह ।
के पुनते ही विनयातिहके नेत्र लाल हो गये | मुना फड़कते'
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