सुशीला उपन्यास | Sushila Upanyas

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Sushila Upanyas by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तृतीय पवे। १३ मूपिह यह सब चरित्र देख सुनके नगरमें खोट आया । एक सरायंकी कोठरीमें नाना विन्ताओंें रात पूरी की और सवेरे प्रात:कालीन क्रियाओंसि निश्चिन्त होकर समर-पमाचार्‌ पनेकी इच्छासे नगरमें घूमने लगा । आन स्मेरे दी सुवणैपुरे महागनका आशान द्रवार मरा हुभ है। संपूर्ण राज्यकमचारी यथास्थान बैंठे हुए है । परन्तु किसके मुंह से एक शब्दं भी नहीं निकटता-ध्यानस्थ हि रहे है | इतनेमें एक सॉडनीसवारने आकर इस शातिताकों भंग की, सब छोग उसकी तरफ देखने लगे । उसने महारानको अद्वके साथ प्रणाम करके एक ददी दी ओर वह एक ओर ना खड़ा हुआ । महारानने वह चिट्ठी मंत्रीको देकर पढ़नेको कहा; मंत्री पढ़के सुनाने छगे । उसमें यह्‌ छिखा हुआ था,- श्रीवातिरागाय नम स्वति श्रीसुवर्णपुर शुभरुधाने विराजमान राजनीति-नैपुण्यादि विविधगुणसम्पन्न राजेश्री विजयसिंहजी योग्य रामनगर नरेश नाहरा्िहका यथायोग्य वचना । अपरंच आपको इस तिषयरमे अनेक वार शिखा गया कि आप अपनी कन्या मदनमालतीका विवाह हमारे कुमार श्रतापसिंहके साथ कर देवें, परन्ठु आपने हमारे पत्रोंका कुछ भी सत्कार नहीं किया । भाप विचारणील और दूरदर्शी हैं, चाहें ते अब भी चेत सकते हैं । इसलिये एक वार पुन सूचना दी जाती है कि आप मदनमाउतीका सम्बन्ध हमरे पुत्रके साथ केका शीघ्र ही प्रबन्ध करं । अन्यथा वराक्तारविः वाह कराया जवेगा जौर तव आपको भ्ये उनित होना पडेगा । इत्यं विस्तरेण । ज्येष्ठ शुक्छा ६ रे भवदीय-हितैषी गुरुवार | नाद्रासह । के पुनते ही विनयातिहके नेत्र लाल हो गये | मुना फड़कते'




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