कानूरु हेग्गडिति | Kanuru Heggadithi

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Kanuru Heggadithi by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कानूरु हेग्गडित्ति १९ रही थी और वे थके हुए-से हो गए थे । सवेरे का किया हुआ नाश्ता भी पच गया या, और उनको भूख भी ज्यादा लग रही थी । रास्ते कौ लाल-लाल धूल भी उड़- उल्कर्‌ उनके पैरके अग्र भाग को आंच पहुंचा रही थी। इसलिए धोती घुटने तक उठाकर खोंस ली थी कमर पर । उनकी रोमावली से भरी छाती दिखाई पड़ती थी चूंकि उन्होंने कोट-कमीज खोल दी थीं । उन्होंने सोचा कि पुटुण्ण के बुलाने पर गाड़ी में जा वैठता तो अच्छा होता; आराम से बैठकर गांव जा सकता था । तुरंत ही फिर उन्होंने सोचा कि यह मेरे लिए शरम की वात है । इसलिए उन्होंने गाड़ी में जाकर वैठने के विचार को दूर कर दिया । इतने में पीछे योड़ी दूर से आती हुई गाड़ी ओर वैलों के गले में वधी घंटियों की आवाज़ सुनाई पड़ी । उन्होंने पीछे घूमकर देखा और जान लिया कि कानूर की गाड़ी है, गाड़ी में बैठे हुओं को अपनी थकावट का प्रदर्शन करना थपने गौरव के लिए दढट्टा है । इस प्रकार सोचकर वे जल्दी-जल्दी चलने लगे । गाड़ी में आगे बैठे हुए रामय्य ने सिंगप्प गौड़जी को देखा । मगर पुटुण्ण से शिकार, कुत्ते आदि के वारे में कुत्तूहलका री वातें सुनते और उत्साह से वातचीत करते बैठे हुए हुवय्य को वे दिखाई नहीं पड़े । “चह कौन है, वहां जाने वाले ?चाल तो सिंगप्प चचा की तरह दीखती है ।”” कहा रामय्य ने । हुवय्य ने झट सिर को ऊंचा करके घूमकर खुशी से देखकर कहा; “और कौन ? वही हों शायद ?”” “हां, वही है । हमारे साथ ही नदी को पार किया । मैंने उनसे कहा कि गाड़ी है, आइए, लेकिन वे नहीं आये ।” कहकर पुदुण्ण उनके न आने का कारण वताना शुरू करने लगा ही था कि रामय्य ने ताली वजाकर जोर से पुकारा, “सिंगप्प चचाजी, रुक जाइये, रुक जाइये ।” पुकार सुन करके भी सिंगप्प गौड़जी बिना रुके दस कदम आगे वढ़ ही गए । तुरंत रामय्य और हुवय्य दोनों उनको वुलाने लगे । तव सिंगप्प गौड़ जी यह सोचकर रुक गए कि मेरे और चंद्रय्य गौड़जो के वीच में मनमुटाव हो गया हो तो इन लड़कों ने मेरा क्या विगाड़ाहै? इस उदारताका कारण शायद बहुत करके सूरज भी वन गया हो । जोर से दौड़ती हुई गाड़ी उनके पास जाकर रुक गई ।-आठ खुरों, दो पहियों से ऊपर उठाई गई लाल धूल वादलों की तरह होकर गाड़ी के भीतर और वाहर भर गई, फल गई। मिंग ने नकेल जोर से खींची तो दल उसांस छोड़कर हांफते उड़ हो गए । उनके नथुने उसांस जोर से लेने-छोड़ने लगे थे । इस कारण से नथने ऊपर-नीचे हो रहे थे जैसे भाथी । बैलों के गले में वंधी घंटियों की लावाज ठ्की के सिंगप्प गौड़जी गाड़ी के भागे आए । उनका छाता, उनका पहनावा सेगगार दस डे, फिर वे गाडी के पीछे कर्‌ दल चाके पड़, फर्‌ व्‌ गाड़ क्‌ पद्ध गए 1




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