जागीरदार | Jagirdar

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जयराम विष्णु जोशी - Jayram Vishnu Joshi

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नारायण विष्णु जोशी - Narayan Vishnu Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जागीरदार अंक पहुला (स्थान--एक कर्तकारका मोपद्ा । सामनेके प्मीगनके पीठे वाद घोर एवं टली, जो स्टेजके आधे हिस्तेते भी कम दै । श्रोटलौकी दीवार जमीनसे दो फट उंत्वी है। दाहिनी छोर सामने एक दरवाज़ा, जिसमेंते चुद अनाज रखनेकी कोदियोँ, टोपडे, फटे हुए गोदड़े रखे हुए दिखलाई देते हैं । श्रॉगनमें बौई श्रोर एक खाट खड़ी की हुई रखी है। जय प्रदा खुलता रै, तव राजल श्रोरलीमे वां श्चोर्‌ चक्कीपर आट पीसती रहती हे । पीते समय उसकी पीठ प्रेक्षकोंकी ओर होती है वद नीले रंगकी पिछड़ी श्रौर उसी रंगका लहँँगा पहने हैं । लहेँगा उसके लिए प्ट श्ोछा है । उस्र दाथोमे मालवी श्रौरत जैसी चूढि्यौ शरोर पैरोमिं कट हैं । ढातीमें चांचुली पर एक रुगाली दोती है! षद्धी पीसते हुए राजल यह गीत गाती है 1) राग--विहाग, ताल दादरा कातिक आयो तो पी नी ायो लेवाने बीराराज१ शारा सार नी गली सावण शरावो वीराराज्‌ ॥ रेरा गदो दीवाली आद्‌ जो थारी चाट । घन्ना में कसो भूल्यों रे भलां, बेना६ के वीराराज थारा खर श्राया राख्या, रस्या मीठा गोर्‌ रा साम रा< छोटा म्रा सीरा ॥ तो परी पीजरा> मौय, पेखा फटफडाय वानों बुलाई सगुन पूछें. थारो दीरारान ॥ गारका जाया सही८ आज चूनर९ लाज चार्‌ । ध्रा पासर१० ये. दे सुगाउ दखटो नीराराज 1! पे [<|] ++ (! ) मादे लिए प्यास्का सन्द! {२ तेरे लिए (२) रूदनमें चारपर गला नहीं भले 1 ( ८१ दः (४) इतनेमें। ( ६ ) दहन 11 ७) पस दद ९९ शाएँ। ६) साइियें 11 १० १ दिन्ा ।




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