आर्यों का मूलस्थान | Aryon Ka Moolsthan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
392
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अध्याय १]. (३)
दशाका सिद्धान्त कायेतः चरितार्थ दै । तथा यह वात स्पष्ट अ्रभा-
वॉके कारणभी सूचित हो जाती है । जब भूमण्डल धीरे धीरे दत
द्ोनेलगा तब उसकी सावेभौसिक मिश्रणकी दुशश या. पिघलीहुई
अवस्थाकार पाकर ठोप दोगई और उसके ऊपर कडे पत्थरकी पपडी
होजानेसे तथा अंशतः उसके टूट-फूटजानेसे हमारे पृथ्वीम्रहपर झमि
. और पहाड बनने प्रारम्म होगये परन्तु तापक्रम बहुत उच्च था
उष्णताका हास अभी दोहदी रहोथा । अतएव इस समयकों जीव-
धारी-विद्दीन युग कहना चाहिये, क्योंकि इस समय सम्पूर्णवायु -
मण्डल, जल तथा प्रथ्वी जीवनके भरण पोषणके छिये अत्यन्तह्दी -
उण्ण थे | जिस आर्ययावर्तसे हमारा सम्बन्ध है उसके विषयमे
सम्बन्ध है, -सूगभशाखीमें सस मेडर्लीकट और व्छैन्फ$, जिनके
सिपुद भारतकी. भूगर्भ सम्बन्धी जॉंच-पडताठ थी, लिखते हैं
अराबछी धरेणीका ऊँचा होना सम्भवतः पूबे-विन्ध्य-युगके
पहले संघटित हुआ है , ” “ विन्ध्य श्रेणी (भारतके.) प्राय द्वीपकी
जीवधारी-विहदीन-समयकी सबसे पिछली चट्टाने हैं, ” और जदहीँ-
तकं प्रमाण मिलता दै, ¢ वह॒ ८ प्रमाण } विन्ध्यके आति पुरातन
तथा शायद पूर्व-सिखरियन ( अथात् जिस काकी चद्टानेपर कटि
नतासे बनस्पतियाँ ओौर पौषे उग सकते थे), के रूपमें श्रेणीवद्ध किये
जानेके पक्षम है (४48 कवत्वाा००४४३ कपकम् ६06
तष्णण्षुफ ० [तार 1879 ०९ प्रण 1, 7, उत्पा)
भारतकी भूगमै-सम्बन्धी जै[च-पड-तालके अध्यक्ष डाक्टर ओलरम
छ्खिते दै “ च्नोकी -जो ` बनावे अराव ` श्रेणीमें भिछती
हैं वे अवस्थान्तरीय चट्टानोंकी हें और बंडे आचीन काठकी हैं ।
( प्रवर -धष्ण् 0 6 ल्गण्डुक ०1०8 2० छत.
1898. . 6 ) इस सम्बन्धमे में यदौ बहत दी दाठके प्रामाणिक
कथनको उद्रूत करनेका सादस करताहूं उससे यह वात प्रकट होती है.
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