आर्यों का मूलस्थान | Aryon Ka Moolsthan

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Aryon Ka Moolsthan by नारायण भवनराव - Narayan Bhavanrav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १]. (३) दशाका सिद्धान्त कायेतः चरितार्थ दै । तथा यह वात स्पष्ट अ्रभा- वॉके कारणभी सूचित हो जाती है । जब भूमण्डल धीरे धीरे दत द्ोनेलगा तब उसकी सावेभौसिक मिश्रणकी दुशश या. पिघलीहुई अवस्थाकार पाकर ठोप दोगई और उसके ऊपर कडे पत्थरकी पपडी होजानेसे तथा अंशतः उसके टूट-फूटजानेसे हमारे पृथ्वीम्रहपर झमि . और पहाड बनने प्रारम्म होगये परन्तु तापक्रम बहुत उच्च था उष्णताका हास अभी दोहदी रहोथा । अतएव इस समयकों जीव- धारी-विद्दीन युग कहना चाहिये, क्योंकि इस समय सम्पूर्णवायु - मण्डल, जल तथा प्रथ्वी जीवनके भरण पोषणके छिये अत्यन्तह्दी - उण्ण थे | जिस आर्ययावर्तसे हमारा सम्बन्ध है उसके विषयमे सम्बन्ध है, -सूगभशाखीमें सस मेडर्लीकट और व्छैन्फ$, जिनके सिपुद भारतकी. भूगर्भ सम्बन्धी जॉंच-पडताठ थी, लिखते हैं अराबछी धरेणीका ऊँचा होना सम्भवतः पूबे-विन्ध्य-युगके पहले संघटित हुआ है , ” “ विन्ध्य श्रेणी (भारतके.) प्राय द्वीपकी जीवधारी-विहदीन-समयकी सबसे पिछली चट्टाने हैं, ” और जदहीँ- तकं प्रमाण मिलता दै, ¢ वह॒ ८ प्रमाण } विन्ध्यके आति पुरातन तथा शायद पूर्व-सिखरियन ( अथात्‌ जिस काकी चद्टानेपर कटि नतासे बनस्पतियाँ ओौर पौषे उग सकते थे), के रूपमें श्रेणीवद्ध किये जानेके पक्षम है (४48 कवत्वाा००४४३ कपकम्‌ ६06 तष्णण्षुफ ० [तार 1879 ०९ प्रण 1, 7, उत्पा) भारतकी भूगमै-सम्बन्धी जै[च-पड-तालके अध्यक्ष डाक्टर ओलरम छ्खिते दै “ च्नोकी -जो ` बनावे अराव ` श्रेणीमें भिछती हैं वे अवस्थान्तरीय चट्टानोंकी हें और बंडे आचीन काठकी हैं । ( प्रवर -धष्ण्‌ 0 6 ल्गण्डुक ०1०8 2० छत. 1898. . 6 ) इस सम्बन्धमे में यदौ बहत दी दाठके प्रामाणिक कथनको उद्रूत करनेका सादस करताहूं उससे यह वात प्रकट होती है.




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