श्री रामदेव चरित मानस | Shri Ramdev Charit Manas
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
182
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दोहा-वडी भाग शे पोरसी, था गुण तेज श्रनुप।
करुण इये ने भालसी, फिकर करे नित भूप ॥ 23 ॥
सुशियौ भगत शिरोमणी, श्रजमलजी रो नौम।
बौने बेटी घौमियों, निश्चै बणसी कौम।। 24॥
मैणादे खुद थी भगत, घरती प्रमु रौष्यौन)
निश्चै जोग मिल, करे किरपा जब भगवौन ।। 25 ॥
ची.--श्रजमलजी रं लगन मेजियौ, वौमण रौ सनमौन वौ क्रियौ ।
लगन लियौ हुय गई सगाई, बौटी घर-घर खूब वंधाई।
जेसलमेर जौन जव माई, सवरं मंन में खुशी समाई ।
बैठा चँवरी वर कन्या जब, पूजन, हवन कियी विपरों तब ।
हथलेवी बौमणों जोड़ियो रोगों मूडी तुरत मोड़ियो ।
ग्रौख्यो में भट ज्योती आई, गई परगोरी सा पंगठाई।
मेणादे री कंचन काया, हूयगो तुरत, देव हरखाया ।
उठमैणादे फेरा खाया, ब्यांव हुयी. सिंगठा टर्खाया।
दोहा-दियी दायजे पोकरण, प्रजमलजी नै गौव।
हयौ मटाकौ वेव रौ, उठ, झ्ाज सरनीव 11 26 ॥।
चौ.-दोतू' जागा राज चलायी, रजधघानी पोकरण बुशायो ।
थौ घनरूप छटोडौ भाई, दोनों रं मन प्रीती छाई ।
कख खुली मनहिं श्रजमलजी री, दो बेट्यों छोटे भाई री ।
अजमल मेणादे रे साथे, रंव प्रेम वड़ी वौ मै)
घनरूपजी सिधाया तीरथ, कियौ घरम रौ धारण वीं पथ ।
साधू वेश कियौ वी धारण, वौत तीरथों में कर भरमण |
मंडी मियाली सतत वेश में, वै पॉंच्या मेवाड़ देश में ।
उठ समाधी जींबत लीनी, जग में श्रमर कौरती कीनी ।
* दोहा-लाछा, सुगना डीकरयो, छोडी थी. धनरूप ।
पाछवोस परनाव्रियो, वौनै अजमल.. भूप ॥ 27 ॥
रथा वौँनडा मरत में, की किरपा करतार ।
श्रजमल.जी रे घर लियौ, रामदेव म्रवतार ॥। 28 ॥।
पुरखों री पावन कथा, बाय री सुख सार ।
बूले री हेलो सुर रामा राजकुमार ॥ 29 ॥।
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