मेरे गुरुदेव | Mere Gurudev

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Mere Gurudev by स्वामी विवेकानन्द - Swami Vivekanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० भरे गुरुदेव रूपी सत्य को पाने के लिए तुमने कोई भी उपाय सोचा है? ओर यदि तुमने वैसा कर छिया है तो वह दूसरी सीढ़ी है । अब एक चाज़ की और आवश्यकता है और वह यह कि तुम्हारा उदेस्य क्या हे १ क्या तुम्हें इस बात पर पूरा विश्वास है कि तुम्हें सम्पत्ति का प्रलोभन नहीं है, कीर्ति की लालसा नहीं है तथा अधिकार की आकांक्षा नहीं है ? वास्तव में तुम्हें क्या विश्वास है कि चाहे सारा संसार भी तुम्हें नीच गिराने की इच्छा करे तो भी तुम अपने 'येय के अनुसार ही काय करोगे £ क्या तुम्हे यह विश्वास है कि जो कुछ तुम चाहते हो उसे भलीर्भति जानते हो ओर चाहे तुम्हरे प्राणों पर भी बाजी ट्गी हो तो भी तुम केवल अपना कम ही करते रहोगे ! क्या तुम्हें अन्त:करण से विश्वास है कि जब तक प्राण सह सकते हैं तथा जब तक तुम्हारे हृदय में धड़कन है. तब तक तुम अपने उद्योग में निरन्तर भिड़े रहोगे ? यदि ऐसा है तो वास्तव में तुम एक सच्चे सुधारक, माग-प्रदरोक, गुरु एवं मनुष्यजाति के लिए वरदान स्वरूप हो । परन्तु मनुष्य कैसा उतावला तथा अदूरदर्शी है ! वह थोड़ा भी धीरज नहीं रखता और देखते हुए भी नहीं देखता है । # दूसरे पर सत्ता जमाने की उसकी इच्छा होती है ओर वह काम्य-फठ की तुरन्त आकांक्षा करता है । ऐसा क्यों है ? वह काय के फल का आनन्द स्वयं ठेना चाहता है ओर यथाथ मँ दूसरों की परवाह नहीं करता | केवर कभ के ढिए ही वह कम करना नहीं चाहता । * 'परयन्नपि न पदयति'




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