बृहदारण्यकोपनिषद् | Brihadaranyakopanishada

Brihadaranyakopanishada by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९७ ) विषय ९०. श्रोज्नादि प्राणोंके सहित शिरमें चमस-दृष्टिका विधान ९१. श्रोज्नादिमें विभागपूर्वक ससर्षि-ृष्ट कं दतीय ब्राह्मण ९२. ब्रह्मके दो रूप = क ९३. मूर्तामूर्तके विभागपूर्वक मूर्वरूप ओर उसके रसका वर्णन ९४ विरोष्णोखहित अमूर्तरूम ओर उसके रखका वर्णन ९५. अध्यात्म मूर्तामूर्तके विभागपूर्वक मूर्तका वर्णन ९६ अध्यात्म अमूर्तका उसके विशेषणोंसहित वर्णन ९७८ इन्द्रियात्सा पुरुषके स्वरूपका वर्णन चतुथं ब्राह्मण ९८. याज्ञवल्क्य-मैतरेयी-संबाद ˆ ` ९९. मेत्रेयीका अमृतत्वसाधनविषयक प्रभ १००. याज्ञवस्क्यजीका आश्वासन १०१. प्रियतम आत्माके खयि ही अन्य वस्तु प्रिय होती हैं १०२. आत्मा सवसे अभिन्न है, इसका प्रतिपादन १०३. सवकी आत्मखरूपताके ्रहणमसे दुन्दुभिः शङ्क ओर वीणाका दृष्टास्त १०४. परमात्मक, निःश्वासभूत ऋण्वेदादिका उनसे अभिनत्वप्रतिपादन ९०५. आत्मा दी सवका आश्रय है--इसमे दृष्टान्त २०६. विवेकद्वारा देहादिके विज्ञानघनस्वरूप होनेम जल्म उठे हुए लवणखण्डका दृष्टान्त १०७ मैत्रेयीकी शद्धा ओर याक्ञवस्क्यका समाधान १०८. व्यवहार दैतमे है, परमार्थ व्यवहारातीत है ** प्म ब्राह्मण १०९. पृथ्वी आदिमे मधुदृ्टि तथा उनके अन्तर्वतीं पुरुषके साथ - शारीर पुरुषकी अमिन्नता ११०. आत्माका स्वाधिपतित्व ओर सर्वा्नयत्वनिरूपण ९९१. दष्यङूडायर्वणद्यारा अधिनीकुमाोको मधुविदयाके उपदेशकी आख्यायिका षष्ट चाद्यण १२. मधुविद्ाकी सम्प्रदायपरम्परा ० उ५ ग-घ प ४९६ ४९८ ५०० ५०२ ५०५ ५०९ ५११ ५९१२ ५२७ ५३५ ५३५ ५२६ ५.४० ५४२ ५ र ६ ५४९ ९ ८ ५६१ ५६४ ५७२ प्‌ १ ट ५८९




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