विन्ध्या बाबू | Vindhya Babu

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Book Image : विन्ध्या बाबू  - Vindhya Babu

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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8 विन्ध्या बाद कंसे भरे । हर समय बेठे सोचा करते थे। इस श्रकमंण्यता ने उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाला । वैसे भी श्रब न युवावस्था रही थी श्रौर न इस महंगाई के जमाने में वसा खाने-पीने को मिलता था । वह तो कहिए कि पुराने जमाने का खाया-पिया घी-दूध था जिससे गाडी किसी प्रकार चल रही थी, नहीं तो कभी की उलार हो गई होती । तो विन्ध्या बाबू का स्वास्थ्य कुछ बिगड़ चला । पहले भी सर्दियों में बहुधा बीमार पड़ा करते थे किन्तु रिटायर होने के पदचात्‌ बीमारी श्रौर मौसम में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं रहा था । बिना नोटिस दिए कभी भी बीमार पड़ जाते थे) विन्ध्या बाबू बीमार क्या पडतेये, एक तूफ़ान श्रा जाता था। हल्ला इतना मचाते थे कि घरभर परेशान हो जाता था। हर बीमारी में, चाहे वह जुकाम ही क्‍यों न हो, विन्ध्या बाबू यह तो घोषणा करते ही थे कि उनका श्रन्त श्रा गया है} इसके अतिरिक्त श्रपनी चीख-पुकार श्र देवी-देवताओं के नाम लेकर श्रपने कल्पित पापों का प्रायदि्चित करते हुए एक ऐसा वातावरण बना देते थे कि प्रतीत होता था कि जेसे संसार का भी श्रन्त हुआ्रा चाहता है । इस बार विन्ध्या बाब्‌की बीमारी काश्नारम्भ टाँग में ददं श्रौर चलने-फिरने में कठिनाई से श्रारम्भ हुश्रा । पिछले कुछ दिनों से विन्ध्या बाबू को रोज सवेरे घूमने जाने का शौक हुश्रा था । बात यह थी कि सवेरे चार बजे के बाद नींद तो वेसे भी नहीं श्राती थी । उन्होंने सोचा कि क्यों न कुछ स्वास्थ्य-लाभ कर लिया जाय । श्राम के श्राम श्र गुठलियों के दाम होंगे । समय भी कटेगा श्र कुछ हस्य भी बन जाएगी ! पड़ोस के एक श्रन्य रिटायडें सज्जन शर्माजी के साथ वह घूमने जाते थे । जिस दिन की यह बात श्रारम्भकी थी, उस दिन भी विन्ध्या बाबू घूमने को गए किन्तु कुछ ही देर बाद वापस भ्रा गए । उनकी




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