तारण - तत्त्व - प्रकाश | Taran - Tattv - Prakash
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
166
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(२३)
२१. अनादि.काल श्रमणं च, 'कुज्ञानं पश्यत्ते वदुः 1
ज्ानं/तत्रःन दिष्ठते, कोणी -उदय भास्कर 11९11...
भावाधं यह् स्र्ताी प्राणी-मनादिकाल-े,ससार के अन्धेरेमे मरण
कर रहा -है इमे मिथ्याज्ञान ही दिखता दै -वहा- उसे सुम्युगत्नान नही
दिखनाई पठता-है-जेे वद -घरके भीत्तर -सूर्यका दर्णन नही -हो .सकता
रै ।
२२. जानं कुजा, एकत्व्,. रजनी. दिनृकर यथु7 ।
यदि रजनी उत्पादं॑ते, दिनकर अस्तंगत 11२१1
भावार्थ ~ सम्यम्नान, तेथा मिथ्यान्नान की एकता रात्रि ओर सूयं के
समान है । जव रात्रि प्रगट होती है तव सूर्य अस्त हो जाता है ।
(ज्ञान समुच्चय सार)
२३. पाचिक' रागं उक्तं, पपिमाव राग-समावं।
संसार वृद्धि सहियं; दंसन विमलं च रागे गचियं च 11१०८ ।
भावार्थ - एक प्रकार का पाक्षिक राग कहा गया हैं । ससार मे पक्ष-
भाव के राग स्वभाव को रखने वाले अनेक प्राणी हैं, वे ससार को
वदति ह 1 निर्मल सम्यर्दर्शन_से ही. ऐसा राग ल जाता है ।
२४. रागादि उववन्नं, राग संहावेन चोगए भनियं ।
रागं च विपय-जृत्त,.राग.विये च विमल सहकारं ।९ ०1
भावार्थ ~ रागादि ,भाव-जहा उत्पन्न होते हूं चहाँ राग राग स्त्रमाव में
आसवत होने से यह प्राणी चारो गतियो में; 'प्रमण करता .है । यह,राग
पाचों 'इत्द्रियों के विपयो में फसा रहता है । जव यह राग विलय हो
जाता है तव निर्मल होने का सहकारी भाव पैदा होता है ।
२५ रागं ससुद्ध ' दिदठी, संय सहकार अंतरं जानं 1
, सक सहाव न विरय, जानं माचरन चठ गरए् गमने. ।९८१।
भावार्थं ~ समार का राग अगद दृष्टिकोदहैष्ेने रामी के ज्ञान में
भगय रहता ह । इस शंका-शील स्वभाव के न छोड़ने से ज्ञान पर पर्दा
पडा रहता है भौर अज्ञान भाव ते जो क्रियाय करता दै -उमी के जनू-
नूत पुण्य व पाप -दाघकर ज़ारो ,रतियों में जाता है 1
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