तारण - तत्त्व - प्रकाश | Taran - Tattv - Prakash

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Taran - Tattv - Prakash by केसरीचन्द धवल - Kesarichand Dhaval

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(२३) २१. अनादि.काल श्रमणं च, 'कुज्ञानं पश्यत्ते वदुः 1 ज्ानं/तत्रःन दिष्ठते, कोणी -उदय भास्कर 11९11... भावाधं यह्‌ स्र्ताी प्राणी-मनादिकाल-े,ससार के अन्धेरेमे मरण कर रहा -है इमे मिथ्याज्ञान ही दिखता दै -वहा- उसे सुम्युगत्नान नही दिखनाई पठता-है-जेे वद -घरके भीत्तर -सूर्यका दर्णन नही -हो .सकता रै । २२. जानं कुजा, एकत्व्‌,. रजनी. दिनृकर यथु7 । यदि रजनी उत्पादं॑ते, दिनकर अस्तंगत 11२१1 भावार्थ ~ सम्यम्नान, तेथा मिथ्यान्नान की एकता रात्रि ओर सूयं के समान है । जव रात्रि प्रगट होती है तव सूर्य अस्त हो जाता है । (ज्ञान समुच्चय सार) २३. पाचिक' रागं उक्तं, पपिमाव राग-समावं। संसार वृद्धि सहियं; दंसन विमलं च रागे गचियं च 11१०८ । भावार्थ - एक प्रकार का पाक्षिक राग कहा गया हैं । ससार मे पक्ष- भाव के राग स्वभाव को रखने वाले अनेक प्राणी हैं, वे ससार को वदति ह 1 निर्मल सम्यर्दर्शन_से ही. ऐसा राग ल जाता है । २४. रागादि उववन्नं, राग संहावेन चोगए भनियं । रागं च विपय-जृत्त,.राग.विये च विमल सहकारं ।९ ०1 भावार्थ ~ रागादि ,भाव-जहा उत्पन्न होते हूं चहाँ राग राग स्त्रमाव में आसवत होने से यह प्राणी चारो गतियो में; 'प्रमण करता .है । यह,राग पाचों 'इत्द्रियों के विपयो में फसा रहता है । जव यह राग विलय हो जाता है तव निर्मल होने का सहकारी भाव पैदा होता है । २५ रागं ससुद्ध ' दिदठी, संय सहकार अंतरं जानं 1 , सक सहाव न विरय, जानं माचरन चठ गरए्‌ गमने. ।९८१। भावार्थं ~ समार का राग अगद दृष्टिकोदहैष्ेने रामी के ज्ञान में भगय रहता ह । इस शंका-शील स्वभाव के न छोड़ने से ज्ञान पर पर्दा पडा रहता है भौर अज्ञान भाव ते जो क्रियाय करता दै -उमी के जनू- नूत पुण्य व पाप -दाघकर ज़ारो ,रतियों में जाता है 1




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