बापू - मेरी माँ | Baapu Merii Maa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
61
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फुरसत नहीं रहती कि खुद कितनी दुबली ओर फीकी हो गओी हैं ! पुराने
जमानेकी ओर्तोमिं भितना खून रहता था कि अुनके मुँह और नाखून
कुदरती तौरसे खाल रहा करते थे । हमने पश्चिमका अर्न्धोकी तरह
अनुकरण किया है । असमे दोष तो बरना ओर पुरुषों दोर्नोका है ।
लेकिन बहनोंकी माफ नहीं किया जा सकता । पश्चिमकी अनुशासने
रहना, सभ्यता, विनय, नियमितता, अुद्यमशील स्वभाव, लगनशीलता,
नयी बाते सीखनेकी तमन्ना, मिलनखारी वगेरा कितनी ही बातें सीखने
लायक हैं । लेकिन मने वह् सत्र तो छोड दिया ओर अुनके पफ ~ पावढरकी
फेशन ले ली ! भिसीलिभिमें तो चह्छठा चिह्छाफर.कहता ह कि बहनंदही
हिन्दुस्तानमे स्वराज्य और सुराज्य ला सकती हैं । क्योंकि मैं मानता
ह कि जेसे चिना गृदिणीकि धरकी व्यवस्था अधूरी रइती है, वेसे बिना
बहनेंकि देशका ब्रन्दोबस्त भी अधूरा ही रहेगा । मगर वह तब हो सकता
है, जब बहनें पवित्र हों । क्या ' पवित्र” दाब्दके मेरे अर्थ तुम जानती
हो १ जिसे खुदको पवित्र कहना हो, जुसमें जितने गुण तो होने चाहिर्ये।
जिन सब गुर्णोका वर्णन ' पवित्र ' जिन तीन अक्षरम दी आ जाता
ह । हममे विवेक हो तभी पवित्रता आ सकती है। में पर्दे-घुँघटका विरोधी
हु, लेकिन मर्यादा तो होनी ही चाहिये । स्वच्छता अन्दरकी (हदयकी) ओर
बाहृरकी हो, तभी पवित्रता आ सकती दै । सुघडता होने पर ही पवित्रता
आ सकती है । सच्चाओ हो तभी पवित्रता आ सकती दे । दग्भ या
दिखावा न हो तभी पवित्रता आ सकती है। स्वमान हो तभी पवित्रता
आ सकती है भोर सेवाकी तमन्ना हो तभी पवित्रता आ सकती है ।
पवित्रतामे असे असे कओ अर्थ हैं । और जिस बातमे रोका नहीं कि
जह पवित्रता होती है, वहाँ भीश्वरका साक्षात्कार होता है । बइनेंकि पास
अगर यह अक शल्ल आ जाय, तो अुन्हें न तलवारकी जरूरत होगी,
न भालेकी । परन्तु रेषे शरछ्रोकी ताटीमसे पवित्रताकी तालीम
कहीं ज्यादा कठिन है । ओर समक्ष ली जाय तो. बहुत आसान
भी है।
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