बापू - मेरी माँ | Baapu Merii Maa

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Baapu Merii Maa by मनुबहन गाँधी - Manuben Gandhi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फुरसत नहीं रहती कि खुद कितनी दुबली ओर फीकी हो गओी हैं ! पुराने जमानेकी ओर्तोमिं भितना खून रहता था कि अुनके मुँह और नाखून कुदरती तौरसे खाल रहा करते थे । हमने पश्चिमका अर्न्धोकी तरह अनुकरण किया है । असमे दोष तो बरना ओर पुरुषों दोर्नोका है । लेकिन बहनोंकी माफ नहीं किया जा सकता । पश्चिमकी अनुशासने रहना, सभ्यता, विनय, नियमितता, अुद्यमशील स्वभाव, लगनशीलता, नयी बाते सीखनेकी तमन्ना, मिलनखारी वगेरा कितनी ही बातें सीखने लायक हैं । लेकिन मने वह्‌ सत्र तो छोड दिया ओर अुनके पफ ~ पावढरकी फेशन ले ली ! भिसीलिभिमें तो चह्छठा चिह्छाफर.कहता ह कि बहनंदही हिन्दुस्तानमे स्वराज्य और सुराज्य ला सकती हैं । क्योंकि मैं मानता ह कि जेसे चिना गृदिणीकि धरकी व्यवस्था अधूरी रइती है, वेसे बिना बहनेंकि देशका ब्रन्दोबस्त भी अधूरा ही रहेगा । मगर वह तब हो सकता है, जब बहनें पवित्र हों । क्या ' पवित्र” दाब्दके मेरे अर्थ तुम जानती हो १ जिसे खुदको पवित्र कहना हो, जुसमें जितने गुण तो होने चाहिर्ये। जिन सब गुर्णोका वर्णन ' पवित्र ' जिन तीन अक्षरम दी आ जाता ह । हममे विवेक हो तभी पवित्रता आ सकती है। में पर्दे-घुँघटका विरोधी हु, लेकिन मर्यादा तो होनी ही चाहिये । स्वच्छता अन्दरकी (हदयकी) ओर बाहृरकी हो, तभी पवित्रता आ सकती दै । सुघडता होने पर ही पवित्रता आ सकती है । सच्चाओ हो तभी पवित्रता आ सकती दे । दग्भ या दिखावा न हो तभी पवित्रता आ सकती है। स्वमान हो तभी पवित्रता आ सकती है भोर सेवाकी तमन्ना हो तभी पवित्रता आ सकती है । पवित्रतामे असे असे कओ अर्थ हैं । और जिस बातमे रोका नहीं कि जह पवित्रता होती है, वहाँ भीश्वरका साक्षात्कार होता है । बइनेंकि पास अगर यह अक शल्ल आ जाय, तो अुन्हें न तलवारकी जरूरत होगी, न भालेकी । परन्तु रेषे शरछ्रोकी ताटीमसे पवित्रताकी तालीम कहीं ज्यादा कठिन है । ओर समक्ष ली जाय तो. बहुत आसान भी है। ११




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