महादेवभाईका पूर्वचरित | Mahadevbhaika Purvacharit
श्रेणी : संदर्भ पुस्तक / Reference book
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
120
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पट उसरी वारीकीमिं वे आसानीसे घुप्त सफते थे। वाके
साय पिछले समययें सुन्दें सहायक पिर गये थे, पर बहुत थी
सर जब वे बकेठे दी वापूका काम करते ये, तवर सरि सैका
और रास्तेंमें मिछे हुआ दानों और मेंम्रेका पाऔ-पाऔका दिसाव
रखते ये ।
पिताजीका गुजराती वाचन बहुत विशाल था । अच्छी-
अच्छी समी गुजराती पुस्तकें वे छगनसे पढ़ ठेते । संत्डत नहीं
खाती थी, परन्तु रामायण, मद्दामारत तथा मीता और शुपनिपदू,
टीकाओंके साथ झुन्दोंने पर छिये थे । मजन गानेका भी सुन्दे
चहुत शौक था । तड़के दी. ढक्र बिछीनेमें बैठ-बैंठ भजन
गाते रहते । शिक्षण-शास्त्रों भी शुनकी बड़ी गहरी दिलचस्पी
थी। वे आश्रममें आते तत्र इमारे साथ राष्ट्रीय शिक्षाकी चर्चा
काते, इमारी कक्षाओं देखने आते, शुप्त विषय पर हमें सूचनाओं
देते और इमारे साथ बातें करते । मैंत्रऔी-गाँवमें प्राथमिक
पाट्दाटाके पाघारण दिक्षफके रूपमे कामकी द्यरुआत षक
वे अदमदाबादके बीमेन्स ट्रेनिंग केठिजके हेडमास्टर पदसे निदत्त
हमे । जिस त्तरदद पुरानी छकीर पर ही शिक्षकके रूपमें झुमर
मर काम करने पर भी झुन्दें नी इृष्टि समझने और स्वीकार
करनेमें देर नहीं छगती थी | जिस समय बड़े-बड़े शिक्षा-शा लियोंमें
मी यद खयाठ मौजूद था कि व्रि्ार्धिर्योको माराजाय तमी वे
अच्छे बनेंगे और पढ़ेंगे, झुस वक्त भी वे कमी विधार्थियोंको नहीं
मारते थे, बल्कि अपने प्रेमसे सिचार्थियेकि दिल जीत ठेते थे।
सूरत जिडेके गाँवेंमिं गाठी देनेका राज बहुत होने पर मी
नाएआज मी दै--वे कमी गाठी नदीं देते थे । जितना ही नहीं,
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