परिषद् निबंधावली | Parishad Nibandhawali

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Parishad Nibandhawali by पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' - Pt. Ramshankar Shukl ' Rasal '

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. रामशंकर शुक्ल ' रसाल ' - Pt. Ramshankar Shukl ' Rasal '

Add Infomation About. Pt. Ramshankar Shukl Rasal

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
घरत॑मान-दिन्दो-पंचरन ह चतुर्दिक्‌ कैल गये हैं. प्रत्येक मन-मानस में नवीन सम्यता की जीवने-ज्याति अगमगाने लगी दै, स्षामाज्ञिक शरीर राजनितिक झान्दोजन प्रतिदिन नये नियले रूपों से हो रदे हैं । धार्मिक भवे की संकोरणता दूर हो रददो है, किन्तु सायदी स्वधार्मिक यातीं का दूत संकुदित दोरदा है। मक्ति श्र प्रेम का तिरामाव ता प्रप्य हा गथा दै यदि नका ध्यत्यस्तामाव ध्यभी नहीं हो पाया । पेसी दशा में भाषा में भी नव्यालेक की रश्मिमाला दैदोयमान हे प द शरीर वद गध दीलियें के रूप में निखर विलर, कर घ घेगवल से थारें श्रार चढ़ती बढ़ती जाती है, इसके सामने कप्रिता फला की कौमुदी क्ञीण श्र मलोन हो रही है, उसकी चह मधुर एयं मोदिनी शीतलता गय की गरी मे लीन-विनीन सी ही रही है, उसकी सुशुमार तंत्री फ्रे तारों की भंकारों का मंद, मधुर फकलरष खड़ी बाजी फे ढोल रूपी गध के घार नाद के पम्पुस सुनाई दी नद्दीं पड़ता, चस “नझारगाने में दूतो की भावान्न सी दृशा है। खड़ी वाली की फबिता-कामिनी प्रमी नवयावना दै इसीसे उसमें याज-चंयलता तथा चेगपूर्ण महरी यति, तयां उमंग, नया रंग, नया न्याया दंप पयं प्रसंग दै, उस्म भध शीयन की र्फूर्ति दे, उसमें जाश दि, नये रक्त की द्रुतगति से घनूडा धय दै, उसमे उस्ताद दै, मौर मान सुमान फा गहरा पवाद द1 प्रतः उसीरी चां भनार प्याज घरां धरोर झर्या होती है 1 इस धाधघुनिक काल में थद्द पुराने राय के त्याग कर घपनी मयौ तान शान रददी दै। उसकी संगीत लड्टियों में तया उसकी




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now