अजातशत्रु एक अध्ययन | Ajatshatru Ek Adhyayan
श्रेणी : ऐतिहासिक कथा / Historical fiction
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)के
कि यदि बह शीतल पवन के मोंके का वर्यान करेंगे ठो चनकी
समथ पदावली र्मे उस पवन छा स्पर्शं मी करने में सददायता
देंगी । शब्दों के द्वारा परिश्थितियों की विरोपता रत्पन्न
करने की इठनी शपूर्व क्षमहा कम लेखकों में दोत्ती है ।
इन विशेपता्थों को इस उद्धरण में कुछ-बद्ध देखा जा
सकता दे:--
साधुओं का भजन-कोलाइल शांत दो गया था 1 निस्त
ब्घता रननी के मधुर डमे जाग रही थी । निशाथ के
नक्त, गगा के युदधर मेँ श्रपना प्रविधित्र देस रहै थ ! शीठल्ल
पवन क मोठा स्वको श्चार्निगन करवा श्या विर के
समान भाग रददा था. । मददात्मा के द्रदय मे हलचल थी,
चद निष्पाप हृदय ध्रप्चारी दुश्चिंता से मलीन, शिविर छोड़
कर केबल डाले) वहुत दूर गंगा की जलघारा के समाप खड़ा
द्ोकर 'झपने चिरसंचित पुरयों को पुकारने लगा 1
शब्दों के द्वारा चित्र '्रेकित करने की शक्ति भी प्रसादजी
में ग्रदमुत यी । दृश्यों की सूदम-से-सूचम रेखाओं को
पाठक देख सकते हैं | उन चित्रों के रंग इतने पारदर्शक होते
हैं कि च्स व्यक्ति के इद्य को मी म स्पष्ट देस सकठे है
पक चदाइरण--
घंटी के कपोलों में दंसठे समय गढ़े पड़ जाते ये । भोली
मतवाली 'माँखें गोपियों के छायाचित्र उदारतीं; श्रौर उभरदीं
हुई चयःसंधि से उसकी चंचलता संदेव छेड़छाड़ करती रददवी।
वद एक चाय के लिए भी स्थिर न रददती--कममा जैंगड़ाई
लेही तो कभी रैंगलियाँ चटकार्वी । सिं क्या का अभिनय
करके पलकों की आड़ में छिप जाती, चव भी मैं चला
करतीं । तिस पर भी घंटी एक -वाल-विघूदा है । ४ नया
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