मार्क्स का दर्शन | Marks Ka Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
95
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)व्यक्ति ओर परिस्थिति
पूरा मनुभ्य
गवो, घों ओर वेदना समाज में बढ़ती जा रही है। रामाज
का रेशा रेशा परिवर्तन पुकार गंदा ईं। फिर भी मान्ति क्यों नदी दो
रद दै पराग, गराब के कन्ये से बन्धा मिला शेपकों से लगने के बदले
धर्म और रा््रीयता रू नाम पर एक दूमरे वा. गला ययों काट रहा दै !
“सामाजिक वातावरण से ( जिसमें भ्ारथिक प्रधान ६) भगुष्व की
भावना निवीति द्वाती हू । --माकस के इस प्रसिदद सिंदान्त के भयुसार
भाज विशाल जनसमूदद को क्रार्ति के मैदान मे र्इना चाहिए था । पर
ऐसा नहीं हो रद कया माकं का सिद्धान्त भलत था १ नदं।
मॉर्क्स ने दी “कायर दाख पर टिषशी लिते हुए १८४५ मे लिखा
था--पभय त्तरे के सभी भौतिकवाद का प्रयान दोप यही रददा है कि उन्होंने
User Reviews
No Reviews | Add Yours...