श्री महावीर चरित्र | Shri Mahaveer Charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
975 KB
कुल पष्ठ :
38
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्री महावीर चरति. (९
पतिका सविस्तर वणन हुभा । तदश्वात् ` महावीरस्वामीने
गोतमसे कहा किं पोक्षका भधानकारण सम्यक्स है। वह
सम्यक्त्व आज्ञा १- मार्गः २ उपदेश ३ सत्र ४ वीर्य ५ संक्षेप
६ विस्तार ७ अथं ८ अवगाढ ९ ओर परमावगाढ १० ऐसे
दशप्रकारका है इन सबका भिन्न २ वर्णन करके गृहस्थधर्म
और मुनिधर्मका वर्णन किया । उसकों शुनते ही गौतमादिकों
चेराग्य उत्पन्न हो गया । तत्काल ही दोनों आता और ५८०
शिप्येसिहित दिगंवरी दीक्षा धारण कर जैनसाधु हो गये |
गौतपमकों ( इंद्रभतिकों ) उसीदिन अवधि्ञान और मनः पये-
यज्ञानकी प्राप्ति हुई और भगवानके प्रथम गणधर होकर
द्वादशांगवाणीकी रचना की । तत्पश्चात् इंद्रने भगवानको नम-
स्कार॑ करके प्रार्थना कियी कि आप जब इस आय्यखंडरमें सवत्र
विहार कफे धमांसृतकी वपा करं । तव मगवानने धमोपदेश
करनेकरेकिये विहार किया । कुवेर समवसरण़ी रचनाक वहामि
विलय करके भगवानने. जहां २ उपदेश किया उसी २, जगह
समचसरणसभाकी रचना करता रहा । भगवान् जहां २. जाते
थे सो सो योजनेमें दर्मिक्ष नष्ट होजाता. था, समस्तर्जाव बेर-
भाव रहित होकर शांतिमे काख्यापन करते थ । `
एक समय विहार करते २ मगप्रदेरकी (विहार प्रांतकी)
प्रभिद्ध राजगृह नगरी ॐ सन्निकट विपुराचरु पर्वतपर
भगवान का समवसरण स्थापित हुआ; जिसके प्रभावसें बनें
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