श्री महावीर चरित्र | Shri Mahaveer Charitra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्री महावीर चरति. (९ पतिका सविस्तर वणन हुभा । तदश्वात्‌ ` महावीरस्वामीने गोतमसे कहा किं पोक्षका भधानकारण सम्यक्स है। वह सम्यक्त्व आज्ञा १- मार्गः २ उपदेश ३ सत्र ४ वीर्य ५ संक्षेप ६ विस्तार ७ अथं ८ अवगाढ ९ ओर परमावगाढ १० ऐसे दशप्रकारका है इन सबका भिन्न २ वर्णन करके गृहस्थधर्म और मुनिधर्मका वर्णन किया । उसकों शुनते ही गौतमादिकों चेराग्य उत्पन्न हो गया । तत्काल ही दोनों आता और ५८० शिप्येसिहित दिगंवरी दीक्षा धारण कर जैनसाधु हो गये | गौतपमकों ( इंद्रभतिकों ) उसीदिन अवधि्ञान और मनः पये- यज्ञानकी प्राप्ति हुई और भगवानके प्रथम गणधर होकर द्वादशांगवाणीकी रचना की । तत्पश्चात्‌ इंद्रने भगवानको नम- स्कार॑ करके प्रार्थना कियी कि आप जब इस आय्यखंडरमें सवत्र विहार कफे धमांसृतकी वपा करं । तव मगवानने धमोपदेश करनेकरेकिये विहार किया । कुवेर समवसरण़ी रचनाक वहामि विलय करके भगवानने. जहां २ उपदेश किया उसी २, जगह समचसरणसभाकी रचना करता रहा । भगवान्‌ जहां २. जाते थे सो सो योजनेमें दर्मिक्ष नष्ट होजाता. था, समस्तर्जाव बेर- भाव रहित होकर शांतिमे काख्यापन करते थ । ` एक समय विहार करते २ मगप्रदेरकी (विहार प्रांतकी) प्रभिद्ध राजगृह नगरी ॐ सन्निकट विपुराचरु पर्वतपर भगवान का समवसरण स्थापित हुआ; जिसके प्रभावसें बनें




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