तत्त्वभावना [बृहत सम्यिक पथ] | Tatvabhavana (brahat Samayikpath)

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भीञअमितगति आचा्यैरुत-- त च्वभावनमा या बड़ा सामरिक फाद ४ मङ्कलाचरण-दोहा । अदैत्सिद्धाचार्यको, वेदि सधु युणद्ाय । जिनवाणी उष चेखनिन, मदिर नमूं सुध्याय ॥ ९॥ परमातम सम आपको, ध्याय गुण उर खय । समताभाव प्रकाशके; आतम सुख स्खकाय॥२॥ सामायिकके भावको; कर मकाझा निज ज्ञान । भव्यजीव भी रस पियं, यह उपकार पिछान ॥ २॥ अमितिगती आचायेकृत, तत्त्वभावना सार ! वाखबोध भाषा करूं, भवदधि तारणहार ॥ '४॥। सन्मति वीर सुवीरको; बद्धमान महावीर । गोतम गुरू कुन्दादिको, सुमरों लिय घरि धघीर ॥ ५ ॥ उत्थानिका-पहले ही चल्नेमं जो हिता हुई उत्तका पश्चा- ताप करते है-




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