आधुनिक ब्रज भाषा काव्य | Aadhunik Braj Bhasha Kavya

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Aadhunik Braj Bhasha Kavya by मुशीलचन्द्र वर्मा - Museelchandra Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ९५) इसी प्रकार कारकों की विभक्तियों को शब्दों के साथ श्रॉर शन्दों से 'पुथक रखने की भित्न-मिन्न शेलियाँ मी श्रव तक उसी प्रकार श्रनिशिचत -रूष से चल रदी ई । निष्कर्ष यदद है कि भाषा के परिष्कार, स्थैय्यं श्रौर नियन्त्रण की ` श्रोर श्रयावधि यये्ट रूप में कार्य नहीं हो सका । इसमें सन्देह नहीं कि “रत्नाकर' श्रौर उनके साथ के कवियों ने इसके लिए, स्ठुत्य कार्य किया है; इसके लिए श्रावश्यक्रता श्रव केवल कवियों के संगठित होकर -मतैक्यर्थिरता श्रीर सददशारिता की दी दे । सम्पादन के सम्बन्ध मे-- यद्यपि श्राघुनिक् त्रनमापा कवियों के एक सर्वा गपूरं सन्द्र-घंम्रह के उपस्थित करने का विचार हमारे मन्म वहत पटले से दी या; किन्तु वह्‌ कायं अनेक कारणों से अब तर पूरा न हों सका--'दाँ; यद्यपि इसके लिए. श्रावश्यक सामग्री श्रवश्वमेवर एकत्रित हो चुकी दै । कुछ बपं पूर्व हमारे सम्पुख एफ दूरा विचार इस सपमे '्राया कि विश्व विद्यालयों के विद्यार्थियों को श्राघुनिक खड़ी बोली-काव्य से परिचित कराते हुए; श्राघुनिक श्र जमापा-काव्य का भी परिचय देना खमीचीन दे । श्रतः उस संग्रदद के कार्य को स्थापित्त कर इस विचार से दी प्रथम यह संग्रद यदाँ उपस्थित किया ना रहा है । इसमें इलीलिए; श्राधु- 'निक त्रनभाषा के केवल ऐसे ही चुने हुए कवि रक्ते गये, जिन 'के स्थान बहुत-कुछ साहित्य-क्ेत्र में निश्चित दो चुके है श्रीर जिन्हें अतिनिधियों के सम में लिया जा सकता है । इस सम्बन्ध में मत-मेद दो । सकता है श्र उतका होना स्त्राभाविक ही है, किन्तु हमने यददाँ श्रपना ५एफक विशेष दृट्टिन्कोण रस्ा है । दूष्या विचार इमे यई रह्म है कि जहाँ तक हो सके उन्हीं कवियों :को यहाँ लिया जाय, जिनके काव्य-्रन्थ प्रायः साहित्य-संतार में श्रा चुके ईः जो भ्रषिद्ध तथा सुपरिचिच ई । एक श्रच्छी संख्या इस समय श्रज- भाषा-कवियों की ऐसी मी है, लिनकी रचनाएँ कवि-षम्मेलन श्रादि के श्रवसरों पर हो सुनने को मिलंती दें; किन्ठ पुस्तंक-रुप में वे शव तक झा० न्न० का०--र्‌




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