साहित्यिक | Sahityika
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about श्री वनविहारी प्रसाद जी - Sree Vanvihari Prasad Ji
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मृत्यु श्र रवीन्द्रनाथ 3 ६
है किं इस कमै-खोत की अविच्छिन्न धारा से हमारी मुक्ति हो।
निराला के शब्दो मे-
जहाँ नयनों से नयन मिले
ज्योति कै रूप सदस खिले
वहती हे जौँ सदा नवरस धार
हमे जाना दै उसके पार ।
इस जग के पार जाने का रहस्य और कुछ नहीं, उस प्रीतम
की पुकार हैं, उससे मिलने की उत्कण्ठा है। मायके में रहते हुए
भी नारी को अपने पति की याद सताती रहती है ! १२ वह
पति को भूल कर नहीं रह सकती । प्रथ्वी के अरु-अराु में,
प्रकृति के प्रत्येक सौन्द्ये-कश में उस प्रीतम की दुवि दै 1१3३
बल्कि अंतर्पटपर भी उसके दर्शन हो सकते हैं, यदि कोई
बाहर से अपनी ्ाँख मूंद ले 1१2. कारण, ईश्वर भी हम से
बहुत दूर नहीं--वह हमारे बहुत निकट है। श्री एकहार्ट ने
१२. ज्यों तिरिया पीहर सै, सुरति रहे पिय माँ हि ।
ऐसे जन जय में रहे, हरि को मूलं नाहि ॥--कबीर
१२. ईशावास्य मिदं सर्व यस्किच जगत्याजगत् |
-ईश० उ० (लाली मेरे लाल की जित देखों तित लाल) ।
९४. दूध माँक जस ध्री है, समुद् माभिः जस मोति
मैन मीजि जो देखहू, चमकि उदे तख जोति ॥
ग्रथवा-- ,
परिलि के ग्राईने में है तसवीरे यार;
जव ज़रा गर्दन सुकाई देख ली ।
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