कश्मीर : देश व संस्कृति | Kashmir Desh Or Sanskriti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पेतिहासिक सूचना, १९ मिक हे । चल्करि लेखक जितना श्पन वर्तमान काल करी मनोर ्रग्रसर होता जाता है, उसका विवरण उत्तरोत्तर उतना हो विशद श्र विस्तारपूर्ण होता जाता है । पहली चार पुस्तकों की श्रनेतिदासिकता से रतना श्रवश्य सिद्ध होता है कि कल्दण में प्राचीन इतिहास को झाज्ञोचक दृष्टि से देसने का वैज्ञानिक संस्कार नहीं था । प्राचीन लोक-परंपरा में कितना भाग पौराशिक है थौर कितना वास्तविक, इसका विवेचन करने की उसमें क्षमता नहीं थी । संभवतः उसके पास पर्याप्त मात्ना में पिछले तीन इजार वर्प का इतिहास लिखने के लिए प्रामाणिक सामग्री भी नहीं रही दोगी । फिर भी उसके विवरण की पहली चार पुस्तकों का इतना महत्व श्रवश्य है कि उनमें श्रणोकः श्रौर कनिष्कः जसे 'एतिहासिक सम्राटों का उस्लेख सम्पृण राजतर्रीगनी में लगभग श्रा सदृ श्लोक दं । परन्तु दनम से धि से ज्यादा श्छोकों मे कल्टग ने श्रपने पूर्यवतीं एकं सौ पचास वर्षो की घटनाओं का ही वर्गन किया है । यही कारग है कि सातवीं श्रीर ग्रावीं तरेमं इतनी बड़ी हैं । ड काश्मीर के सांस्कृतिक भूगोल की दृष्टि से भी राजतरंगिनी का मूल्य अत्यधिक है । इस संघ्रेघ की सूचनाओं को सर झ्ॉरेल स्टाइन ने तीन भागों में चॉटा है । १. प्रारंभ से ही कार्मीर मैं पवित्र स्थानों की पूजा का सबसे ज्यादा महत्व रहा है। तः पहली सूचनाएं इन पवित्र स्थानों से संवंध रखती हैं । कल्ट्ण ने राजतरंगिनी की भूमिका में लिखा है कि कार्मीर एक ऐसा देश ै जहाँ सरसों के दाने के वरावर भी एसी रिक्त भूमि नहीं है. जहाँ पर कोई तीथे न हो 1 वास्तव में श्राज भी इन स्थानों की संख्या अनगिनत टै गनौर विलक्षण वात यद्‌ हे की इस्लाम श्रपना लेने के वाद भी इस दिशा में कोई परिवर्तन नहीं हुमा है । इसके विपरीत शायद ही कोई ऐसा गाँव या चमा दै जहाँ का चमा या छुंज हिन्दुसों के लिए पुनीत स्थान हों श्रौर जहाँ सुसलमानों की “ज़ियारत' न हो । यह उल्लेखनीय हैं कि ऐसे प्राचीन पवित्र स्थानों में झधिकतर चश्मे हैं, जिन्हें काश्मीरी में 'नाए: कहते हैं; या निर्मर, नाले श्रौर नदियाँ हैं । ये स्वयंभू देवता हैं, जिन्हें भक्तों की दृष्टि प्राकृतिक स्थानों में सहज ही हूँढ निकालती है। ये तीर्थ दिन्द्‌-वरी के ह श्रौीर उन्हीं स्थानों .पर मिलते हैं जहाँ पर हिन्दूमत का प्रचार दै या रहा है। विशेषकर नेपाल, कुमायूँ, काँगड़ा, उदयन श्रौीर स्वाद, आदि .श्रदेशों में एसे तीर्था की वहुतायत है । च अ सन से पिया जा डे ही जास्दया बाय जी रा. दुलिि,ऊाा




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