आधुनिक कवि [ भाग 2 ] | Aadhunik Kavi [Bhag 2 ]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
148
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)है
श्रात्त नही मानव जग करौ यहं मर्ोज्ल उल्लासः
या
“कँ मनुज को श्रवसर देखे मधुर प्रकृति मुखः
प्रथवा न
प्रकृतिधाम य : तृण तु कण कण जहाँ प्रफुल्लित जीवित,
यद श्रकेला मानव ही रे चिर विप्रण्ण, जीवन्मृत !--
श्रादि बाद की, स्वनार््रोमे मेरेदह्य का श्ाकर्पण सानवजगत
कीश्रोर श्रधिक प्रकट होता है ज्योत्सना तक मेरे सौन्दर्य बोघ की
भावना मेरे ऐन्द्रिक हृदय को प्रभावित करती रही है, मैं तन्न तक भावना
'ही से जगत् का परिचय प्रास करता रहा, उसके बाद मैं बुद्धि से भी
संसार को समने की चेष्टा करने लगा हूँ। श्रपनी भावना की सहज
दृष्टि को खो बैठने के कारण या उसके दर जाने के कारण, मैंने युगात
में लिखा है,--
वह् एक असीम श्रखंड विश्वे व्यापकता
खो गई तुम्हारी चिर जीवन साधंकता !”
भावना की समग्रता को खो बैठने के क्रारण मैं, खंड खंद रूप में, संसार
को, जग जीवन को समकने का प्रयत्न करने लगा । यह कहा जा
, सकता है कि यहाँ से मेरी काव्यसाधना का दूसरा युग श्रारंभ होता है ।
¦ जीवन के प्रति एक श्रंतर्विश्वास मेरी बुद्धि का श्रज्ञात रूप से परिचालित
¦ करने लगा श्र टिशाश्रम के चणों में प्रकाश स्तम का काम देने
लगा । जैसा कि मैंने 'युगांत में भी लिखा है,--
^... ...जीवन लोकोत्तर
दती लर, बुद्धि से दस्तर;
पार करो विश्वास उरण धर !
अवे मानता हूँ कि भावना और बुद्धिस, संश्लेषण श्रौर विश्लेषण से
इम एक दही परिणाम पर पहुँचते हैं ।
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