समाधितन्त्र | Samadhitantra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ ( १२ ) रण विद्वत्ताके घनी थे, सेवा-परायणो मे भ्रग्रगण्य थे, महान दा निक थे, श्रद्धितीय वैयाकरण ये, श्रपूर्व वैद्य.थे, घुरघर कवि थे, वहुत बड़े तपस्वी थे, सातिशय योगी थे और पूज्य महात्मा थे । इसीसे कर्णाटकके प्राय सभी कवियोने--ईसा- की पर्वीं, €वी, १०वीं श्ताब्दियोंकि विद्वानोने-श्रपने-प्पने ग्रंथोमे बडी श्रद्धा- भक्तिके साय श्रापका स्मरण किया है श्रौर श्रापकी मुक्तकठसे प्रद्सा की है । = जीवन-घटनाएं आ्रापके जीवनकी अनेक घटनाएँ हैं-जेसेकि १ विदेहगमन, २ घो रतपइचर्यादिके कारण .श्राँखों की ज्योतिका नष्ट हो.जाना तथा “'शान्त्यण्टक' +के एकनिष्ठा एवं एकाग्रतापूर्वेक पाठसे उसकी पुन सम्प्राप्ति, ३ देवताझंसे चरणोका पूजा जाना ४ ओऔपधि-ऋद्धि की उपलब्धि ५ श्रौर पादस्पृष्ट जलके श्रभावसे लोहेक। युव्ण मे परिणत हो जाना (ग्रथवा उस लोपे सुवरणेका विदेप लमि प्राप्न होना) इन पर विशेष विचार करने तथा ऐविहासिक प्रकाश डालनेका इस समय श्रवसर नहीं है । थे सब विशेष ऊहापोहके लिये यथेष्ट समय श्रौर सामग्रीकी श्रपेक्षा रखती हैं । परन्तु इनमे श्रसभवता कुछ भी नही है--महायोगियोंके लिए ये सब कुछ श्वय है । जव तक कोई स्पष्ट वाधक प्रमाण उपस्थित न हो तव तक-~-- सवंत वाधकामावादस्तुग्यवस्वित * की नीतिके श्रनुसार इन्हें माना जासकता है। पितृकुल श्रीर गुरुकुलं ५ शव पितृकुल श्रौरं गुरुकूलके विचारोको मी इस समय छोडा जाता है 1 हाँ; इतना जरूर कटदेना होगा कि राप मूल सघान्तगंत नन्दिके प्रधान श्राचार्य ये, स्वामी समन्तमभद्रके वाद हुए हैं--श्रवणवेल्गोलके शिलालेखो (न० ४०, १०८) मे समन्तभद्रके उल्लेखानन्तर “तत ” पद देकर श्रापका उल्लेख किया गया है श्रौर ~+-यह्‌ शान्त्यष्टक “न स्तेहाच्छरण श्रयान्ति भगवन्‌” इत्यादि पद्यसे प्रारम्भ होता है श्रौर 'दशभक्ति” श्रादिके साथ प्रकाशित भी हो चुका है । इसके अन्तिम झाठवें पद्यमे “मम मावितकस्य च विमो दृष्टि प्रसन्ना कुर” ऐसा 'दचर्थक वाक्य भी पाया जाता है, जी दृष्टि-प्रसन्नताकी प्राथेना कोः लिये हुए है ।




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