प्रेमसुधा [भाग ९] | Premsudha [Part 9]

Book Image : प्रेमसुधा [भाग ९] - Premsudha [Part 9]

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ देखने वालि बहुत है, बु काने वाले थोडे है । (मिथ्यात्वं के प्रसारक वहत है, किन्तु उसके निवारक वहुत कम ह 1} भ्राग कितनी ही क्यो न फले, असत्य कितना दही क्योन बढ जाय, अ्राखिर विजय सत्य की ही होती है । सत्य का एक हो उपा- सक हजारों को उस आग से-ग्रसत्य से-वचा लेता है श्रौर एक ही श्रसत्यतेवी हजारो को मिथ्यात्व-मूसीवत-दु ख-मे डाल देता दहै । श्रत एव मनुष्य को राक्ति भर असत्य के उन्मूलन के लिए प्रयत्न करना चाहिए । तो श्राठवे दर्गनाचार प्रभावनाका श्रभिप्राय यही हैं कि झ्रागे से रामे धर्म का प्रचार होता जाए । जो धर्म श्रापने सुना है, उसे दूसरो को सुनाते चलो । जेसे तुम सिनेमा देख कर श्राते हो तो उसका कथानक दूसरो को वड़े रस के साथ सुनते हो । सिनेमा कौ दलाली तो कोयले की दलाली है, किन्तु घमं की दलाली से यहां श्रौर वहाँ भी मुख उज्ज्वल ही होगा । तो प्रभावना नामक ग्राठवे द्जनाचार के श्राठ भेद है, जिनमे पहला भेद प्रवचनप्रभावना है, श्रर्थात्‌ घर्मशास्त्र को स्वय पढना शझ्ौर दूसरो को पडाना या सुनाना, विचारो का श्रादानप्रदान करना, धर्म- शास्र के श्रध्ययन की व्यापक रूप से व्यवस्था करना श्रौर धर्म- ज्ञान का अधिक से प्रधिक प्रसार करना, यह्‌ सव प्रभावना के अन्तर्गत है । दूसरी प्रभावना धर्मकथा है । गुरु की सेवा करके जो ज्ञान प्राप्त किया है, उसके द्वारा धर्मकथा करो श्रौर भूले-भटके लोगो को सन्मार्गे पर लगाग्रो ! श्राप धनोपार्जन करते है तो उसका कोई न कोई लक्ष्य होता है । धन प्राप्त ठौ जाने पर उसे किसी दुनियावी




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