प्रेमसुधा [भाग ९] | Premsudha [Part 9]
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
282
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
देखने वालि बहुत है, बु काने वाले थोडे है । (मिथ्यात्वं के प्रसारक
वहत है, किन्तु उसके निवारक वहुत कम ह 1}
भ्राग कितनी ही क्यो न फले, असत्य कितना दही क्योन बढ
जाय, अ्राखिर विजय सत्य की ही होती है । सत्य का एक हो उपा-
सक हजारों को उस आग से-ग्रसत्य से-वचा लेता है श्रौर एक ही
श्रसत्यतेवी हजारो को मिथ्यात्व-मूसीवत-दु ख-मे डाल देता दहै ।
श्रत एव मनुष्य को राक्ति भर असत्य के उन्मूलन के लिए प्रयत्न
करना चाहिए ।
तो श्राठवे दर्गनाचार प्रभावनाका श्रभिप्राय यही हैं कि झ्रागे
से रामे धर्म का प्रचार होता जाए । जो धर्म श्रापने सुना है, उसे
दूसरो को सुनाते चलो । जेसे तुम सिनेमा देख कर श्राते हो तो उसका
कथानक दूसरो को वड़े रस के साथ सुनते हो । सिनेमा कौ दलाली
तो कोयले की दलाली है, किन्तु घमं की दलाली से यहां श्रौर वहाँ
भी मुख उज्ज्वल ही होगा ।
तो प्रभावना नामक ग्राठवे द्जनाचार के श्राठ भेद है, जिनमे
पहला भेद प्रवचनप्रभावना है, श्रर्थात् घर्मशास्त्र को स्वय पढना शझ्ौर
दूसरो को पडाना या सुनाना, विचारो का श्रादानप्रदान करना, धर्म-
शास्र के श्रध्ययन की व्यापक रूप से व्यवस्था करना श्रौर धर्म-
ज्ञान का अधिक से प्रधिक प्रसार करना, यह् सव प्रभावना के
अन्तर्गत है ।
दूसरी प्रभावना धर्मकथा है । गुरु की सेवा करके जो ज्ञान
प्राप्त किया है, उसके द्वारा धर्मकथा करो श्रौर भूले-भटके लोगो को
सन्मार्गे पर लगाग्रो ! श्राप धनोपार्जन करते है तो उसका कोई न
कोई लक्ष्य होता है । धन प्राप्त ठौ जाने पर उसे किसी दुनियावी
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