गुरुग्रन्थ प्रदीप | Guru Granth Pradeep

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Guru Granth Pradeep by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गुरुमन्थप्रदीप। ९७ हारि गरु होतंहे ओर जो :गायन्यादि- मंत्रंका तथा . युज्ञादिकर्म विद्यीं काःउपदेशक -दौताहै.सो वेदिक गुरु हतां हैऔर ज़ो- आता का अह्मरूप से साक्षात्‌ करा , सोः आध्यासिक गुर दति सी. गुरुजी के पिता ओर हरिदर्याीलपंडित ' व्यावहारिक तथ वेदिक शरै ओर विष्णु मगवान्‌ःमाष्यासिक गुरु द जैसे नच्करेता योम . बलंसे,संपर्मनी पुरी में यमराज के पास गयाथा तेसे गुरु नानक़देव योगबलसे विष्णु भगवार के पास-सत्यलोक मे.गयसे पर्त इसमे यहशङ्चा दती हे यदि गुरुनानक . देवजी केःविष्णु युर दोते.तब अपनी बाणी भँ तिनकी त्यूनता,न लिखते और न्यूनता गुस्वचन में. स्पष्ट हे ॥ तथारि॥ ` ˆ. | भेरउःअष्टपदी महल्लः. येगी ब्रह्मा वि ` ष्एुःसस्द्रासेगी सकता पुहीःमह ` रंताःॐः ब्रह्माःविष्णीः महादेव बैगल रोगी विचहमकरकमीह 0 न एल सार इनंसे-आदि लेकर अंनन्तः.वचनं विष्णु कं के बोधक गुंस्वींएी में हैं इंसेंकी 'समीधिनि परे कष्ण ` आदिक शब्दों से प्रतिपादन कर जो पसर के अ है म ० गुल




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