हीरक प्रवचन [भाग 3] | Hirak Pravchan [Part 3]

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Hirak Pravchan [Part 3] by देवेंद्र मुनि - Devendra Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 द्ध प्रयु नाम खर संख पाएगा ई [ ७ ˆ पने सरदार के सामने सढा अधमे की वतिं करते रहते थे। घ्‌ श्रधमे का ददी व्यापार करता श्चोर श्राचार भी चयसेमय था। ¦ घ एेसा जल्लाद श्रौर क्र था कि वह जिसको मारता उसके प्राण ही विसजेन कर देता था। षष इस प्रकार से चशसता | पूवेंक कार्य करने मे निर्भीक था) वद्‌ किसी व्यक्ति को उसके शब्द्‌ सुनकर भी शब्द भेदी बाण से मार सकता था। इसलिए उसे शब्द्‌ भेदी नाम से खं गोधन क्रिया गया दै। त छापने सुगल कालीन इतिहास तो पढा दी द्ोगा। उसमें # घताया गया है कि पृथ्वीराज चौहान जो कि थजमेर का शाक । था, उसमे भी यह्‌ विशेषता थी कि वद्‌ शब्द्‌ सुनकर उसी ¦ निशान पर बाण चला देता ौर वष्ट अचूक निशाना लगा | सकता था । एक समय की बत है कि मुगल वादशाष्ट॒शद्यावुदीन ¡ ने उसे लडाई मे घदी वना लिए । उस वीर स्वासिमानी राजा । की उसने दोनों 'हांखें निकलवाली और उसे जब्सभर के लिए छंधा वना दिया । उसने फिर भी उसे एेदी से चोदी तक भरी सांक्लों से बांध रखा था। एष्वीराज के साथ उसका भाट पवद्वरदाई भी सेका मे उपस्थित था ! उसने एक समय खुशी के , मौके पर बादशाह शद्ाबुदयीन के सामने ष्रथ्नीरान फे शब्द ॒येदी घाण चलाने की पशसा फी । बादशाह ने पृथ्वीराज को उसकी ¦ एला देखने ऊ लिए राज दरवार बुलाया ! जब प्रथ्तरीराज दरवार 1 पेश €< † भरं पेश किए गए तो वादशा ते उसे श्चपनी दला प्रदशेन फरने के ; लिए हुक्म दिया । राजा के हाथ-पेरों की दथकडिया श्चौर वेडियां खोल दी गईं । चन्दवरदाई भाद ने श्चपने स्वामी के हाथ ' सें । तीर कमान देकर निस्न दोदा कहा किः-~ ` |




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